हां चलना है तुझे इस भीड़ से अलग
ख्वाहिश रख तेरी पहचान हो अलग ।।
फिर क्यूं चले, तू इस भीड़ के साथ
जब कोई नहीं है संग, अब तेरे साथ ।।
सोच रख सकारात्मक, सत्य जो तेरे संग चला
भीड़ की क्या बिसात ,बिगाड़ सके जो तेरा भला ।।
संस्कारों का ले खज़ाना, फर्जो को चल तू निभाते
रहे सदा जीवन भी तेरा,सिर्फ़ हंसते खिलखिलाते ।।
दुनिया की भीड़ में ,छोटी सी हो पहचान
खुद से अब न रहना , यूं तुम अनजान ।।
अकेले चलने की जब, मन में हो निडरता
साहस का प्रकाश तब, चहूंओर बिखरता ।।
मेहनत, सच्ची लगन लक्ष्य तुम्हें दिलवायेगी
माता-पिता का आशीर्वाद भी यूं रंग लायेगी ।।
हौसला रख “ओजस्व”, चल भीड़ से जुदा
तेरी राह में चलता है , संग तेरा ही खुदा ।।
✍️मनीषा ठाकुर( कर्नाटक)