मेरे राजन को क्या हुआ है ? मुझे भी तो कोई बताओ। कहाँ मेरा राजा बेटा ? मेरा तो वही सहारा है। वह सूबह मुझसे कहकर गया था कि मै कल सुबह आऊँगा क्यौकि आज रात को हमारे सर्कस का सो है। वह बता रहा था कि उसमें कोई मन्त्रीजी आरहे है वह हमें इनाम देंगे। माँ मै अब तुझे अच्छे डाक्टर को दिखाऊँगा।
क्या हुआ है मेरे लाल को कोई तो बताओ ? तुमने इतनी भीड़ क्यौ लगाई है क्या मेरे राजा ने कोई बडा़ इनाम जीता है। ” राजन की रोती हूई सबसे पूछ रही थी।
लेकिन सब चुप थे कोई भी कुछ बोलने को तैयार नही था।
राजन अपनी माँ इकलौता बेटा था उसके पापा की बचपन में ही मौत होगयी थी। राजन को उसकी माँ ने महनत मजदूरी करके पाला था।
राजन अब अठारह साल का जवान छोरा था। उसने अपने गाँव मे ही मजदूरी करके अपनी माँ का पेट भरता था। अब उसकी माँ को भी सन्तोष था कि बेटा बडा़ होगया है। कमाने लगा है अब इसकी शादी और होजाय जिससे बहू व पोतौ का मुँह देख कर मुझे भी सन्तोष आजायेगा।
परन्तु ईश्वर को तो कुछ और ही मन्जूर था। एक दिन उसके गाँव में एक सर्कस वाला हर्कस दिखाने आया। राजन भी सर्कस देखने गया। उसकी सर्कस में काम करने वाले श्याम से दोस्ती होगयी। श्याम ने राजन को समझाया तू सर्कस में काम करले मै मालिक से बात कर लूँगा यहाँ से अच्छी कमाई होगी।
राजन को भी ऊचाई पर चढ़ना कूदना अच्छा लगता था। उसकी उम्र भी कूँदने फाँदने की थी।
जब उसने अपनी माँ को बताया तब ऊसने मना करदिया था परन्तु वह नही माना और सर्कस में भरती होगया।
उसने शौक शौक में ही सारे खेल सीख लिए और वह कुछ दिन में ही सर्कस के मालिक का चहेता बन गया। अब सर्कस में उसका हुक्म चलने लगा।
इस बात से श्याम उससे दूर होता चलागया।श्याम को उसका इतना ऊपर उठना अच्छा नहीं लगरहा था। वह उसको नीचे गिराने की सोचने लगा।
और श्याम ने एक दिन उसके जाल की रस्सियाँ काटदी जैसे ही वह अपना खेल दिखाकर जाल पर गिरा वह जमीन से टकराया और उसकी वहीं मौत होगयी।
श्याम को यह नहीं मालूम था कि इतना बडा़ हादसा होजायेगा। वह तो केवल उसके पैर तोड़ना चाहता था परन्तु वह तो अपनी माँ के बायदे को तोड़कर चला गया।
आज राजन की डैडबाडी गाँव में आई थी । जब राजन की मा के सामने उसके बेटे की डैडबाडी आई वह चीख कर रोने लगी और रोते रोते वह भी अपने बेटे के पास चली गयी।
रचनाकार का नाम :- नरेश शर्मा ” पचौरी “