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गुज़र गया अब जमाना पतझड़ का
झूम कर देखो मौसम-ए -बहार आयी
आँख फड़का हैं एक माँ की आज
दिग्भ्रमित युवा को अरसे घर की याद आयी
बसरो बाद लहराई हैं तुलसी आँगन मे
अरसे बाद बहू के पाँव मे पायल छनकाई
छलका हैं आँख पिता की खुशी मे आज
दिग्भ्रमित बेटे को परिवार की याद आयी
सालो से राह देख रही माँ दहलीज पर बैठी
उनके ममता की तुम्हे ज़रा भी याद ना आयी
कैसे कैसे गुज़ारे होंगे तड़प मे ज़िन्दगी अपने
जिसका अबतक तुम्हे क्यूँ ना ख्याल आयी
हर पल इंतजार मे बीतते रहे ज़िन्दगी उनकी
बच्चो की प्यार मे इन्हे मौत का भी याद ना आयी
बीतती रही रात माँ की सिसकियो मे अबतक
दिग्भ्रमित युवा को आज घर की याद आयी
शहरो के शोहरत मे ये ज़िन्दगी गुम होती रही
घर की लक्ष्मी को भूल क्लब की नारी रास आयी
महसूस कर हज़ारो गलतियां बेटे की आँखों मे आज
पछताप की आँसू के साथ अपने घर की याद आयी
गुज़रते ज़िन्दगी के साथ गलतियां नज़र लगाती हैं
होता हैं अहसास जब बात अपने ही ऊपर आयी
माफ़ कर देते हैं माँ बाप हमारे हर एक गलतियां
साथ खड़े मिलते हैं जब जब मुश्किल की बात आयी
सुकून भरा हैं आँखों मे पिता का सदियों बाद जैसे
घर की बाग़ मे जैसे बरसों बाद ऐसी बहार आयी
आंखें नम हैं फिर भी ममता मुस्कुराई हैं आज “नैना”
दिग्भ्रमित युवा को अरसे बाद घर की याद आयी…..!!
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नैना… ✍️✍️✍️