साथियों मैं आज ‘बंद खिड़की’ से सहसंबंधित कुछ फलसफे लेकर आपके समक्ष आई हूँ।कुछ रिश्ते टूट जाते हैं कुछ हम खुद तोड़ देते हैं. कुछ रिश्ते जो जुड़ नहीं पाते और कुछ जुड़े हुए रिश्ते जो सिसकते रहते हैं. फिर भी, यह रिश्ते ही हमें हमारे वज़ूद का एहसास करवाते हैं और हर रिश्ता हमें कही ना कहीं एहसासों से भरता हैं।
देखिए एक घटना का परिदृश्य शायद उससे मेरी बात समझने में सहजता हो -:
एक दिन हम कहीं बाहर जाने के लिए निकल रहे थे।बाहर जाने के लिये कॉरीडोर का दरवाजा खोला ही था कि तभी पास ही बनी बंद खिड़की के पास बैठी एक चिड़िया की तरफ हमारा ध्यान गया जो बार-बार उड़ने का प्रयास कर रही थी लेकिन कांच से टकराकर फिर वहीं बैठ जाती थी। उसकी तड़प मुझसे देखी नहीं गयी और मैंने अपने पति से खिड़की का दरवाज़ा खोलने के लिये कहा,क्योंकि उस दरवाजे की चिटकनी ऊँचाई पर थी। उन्होंने कहा -अगर उसे उड़ना ही है तो सामने इतना बड़ा दरवाजा खुला पड़ा है वो वहाँ से उड़ सकती है। फिर भी मेरे द्वारा दोबारा कहने पर पति महोदय ने खिड़की खोल दी और चिड़िया फुर्र से उड़ गयी। मान्यवर को चिड़िया की मंद बुद्धि पर आश्चर्य हुआ और मानव के विकसित मस्तिष्क पर शायद नाज़ हुआ हो किंतु मैं सोचने को विवश हो गई कि क्या हम सभी उस चिड़िया की भांति किसी एक ही रिश्ते की डोर या किसी एक ही लक्ष्य को लिये नहीं चलते रहते? क्या हम एक रिश्ते से चोट खाकर दूसरे रिश्तों को अपने ज़ख्मों पर मरहम लगाने का अवसर जल्दी से दे पाते हैं?अपनी सोच को बिना समय गंवाए परिवर्तित कर पाते हैं? अपने उसी एक लक्ष्य को पूरा करने में इतना खो जाते हैं कि इस बात का एहसास ही नहीं कर पाते हमने क्या खो दिया? ‘बंद खिड़कियाँ’ दस्तक है ऐसे ही बंद दरवाजों पर जिन पर हमने भीतर से कड़ी लगा रखी हैं. लेकिन यह दरवाजे खुलना चाहते हैं, सांस लेना चाहते हैं, जीना चाहते हैं।निश्चित ही खिड़की का दरवाज़ा खुलते ही फुर्र से उड़ने वाली चिड़िया यह कह गई कि हम जिस रास्ते से आए हैं वही मुझे जाने के लिए विश्वसनीय लगता है,पर ऐसी वास्तविकता तो नहीं है न।हमारे अंदर कुछ नया करने,सीखने और मुश्किलों से निकलने का नया नया मार्ग खोजना और अपनाना चाहिए। जोखिम उठाने का सदैव साहस रखना चाहिए। तभी तो हम कठिनाइयों से दो चार होते हुए अपना अबूझ रास्ता ढूंढने में कामयाब हो सकेंगे।
“जिंदा तो सभी हैं मौत के न आने तक तू जी ले जरा जिंदगी, साँसों के रुक जाने तक।”
धन्यवाद!
रचनाकार-
सुषमा श्रीवास्तव
उत्तराखंड।
मौलिक रचनात्मक विचार
‘सर्वाधिकार सुरक्षित’