कैसे करूँ विदा मैं तुझको
कैसे साहस खुद में भरूँ,
तू है मेरे कलेजे का टुकटा,
कैसे खुद से दूर करुँ।।
ये कैसी रीत विधाता ने बनाई,
देखकर सबसे अनमोल तोफा” बेटी,”
उसे ही कर दिया सबसे पराई!!
नन्हे नन्हे कदमो से अपने,
 मेरे घर की शोभा बढ़ाती है,
खिलखिलाहट गूँजा करती है उसकी,
एक वो ही तो है जो, 
मेरे घर को घर बनाती है।।
बड़े नाजो से पाला है उंसको,
गम का साया न पड़ने दिया
बनी रहे मुस्कान उसकी
 मैंने न जाने क्या क्या जतन किया।।
अक्सर सोचता हूँ मै,
न जाने क्या क़िस्मत होगी उसकी
बाबा की राजकुमारी है जो,
क्या पिया की रानी बनेगी!!
कैसे करूँ ख़ुद ज्यादा यक़ी किसी और पर
कैसे सौप दू तुझको मैं,
मेरी जान बसती है जिसमे,
 कैसे उसका कन्यादान करुँ,
 बनाकर रीत कन्यादान का,
विधाता भी खूब रोया होगा,
छलनी हुआ होगा सीना भी  उसका
जिसने बेटी का भाग्य रचा होगा।।
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