हार गए राजे महाराजे हर कोई रीत निभाता
सब दानों में श्रेष्ठ दान ये कन्यादान कहाता
जाने किसने कैसे और क्यों ऐसी रीत बनाई
घर आंगन की रौनक भी पल भर में होय पराई
मां की पीर समझती बेटी
पिता की मां भी बनती बेटी
पूछो कितनी पीड़ा होती
दान में जब वह देते बेटी
घर आंगन की वह फुलवारी
सारी खुशियां उस पर वारी
आंसू कोई रोकना पाता
विदा होय जब वह सुकुमारी
नाजो से पाले पोसे और चली जाए ससुराल
फिर जीती है वह जैसा भी लिखा हो उसके भाल
बेटी के मात-पिता होना आसान नहीं होता
कन्यादान से श्रेष्ठ और कोई दान नहीं होता
प्रीतिमनीष दुबे
मण्डला मप्र