एक ऐसे संत जो सोशल मीडिया,पर काफी सक्रिय और चर्चित रहते हैं,।ऊर्जावान ,सामाजिक कार्यों में अग्रणी(कावेरी बचाओ अभियान ) ,कभी मोटरसाइकिल पर रेस लगाते हुए,तो कभी माउंटेन ट्रैकिंग करते दिखते हैं,और जब साधना या वक्तव्य देते हैं ,तो चेहरे पर दैवीय चमक ।बहुत सुना था सदगुरु के बारे में जिन्हें लोग जग्गी वासुदेव के नाम से भी जानते हैं।
सदगुरु से मिलने की इच्छा मुझे ईशा योग केंद्र खींच रही थी | हैदराबाद से कोयंबटूर 40 km की दूरी पर स्थित है।
और कोयंबटूर से लगभग 30_ 35 किलोमीटर अंदर सदगुरु द्वारा स्थापित ईशा योग केंद्र है।
कोयंबटूर से हमने टैक्सी ली ,ओर कोयंबटूर की भीड़ वाली सड़को से गुजरते सुपारी और नारियल के वृक्षों को निहारते हम पश्चिम की ओर बढ़ते है, जहां से दक्षिण भारत का ग्रामीण इलाका शुरू होता है तभी हमें वैलयांगिरी की पहाड़ियां दिखाई देती है चारो ओर ख़ामोशी ही खामोशी ।
आख़िरकार टैक्सी में तमिल गानो और प्रकृति का लुफ्त उठाते हम अपनी मंज़िल पहुँच जाते है | सामने गेट के सर्प की भव्य आकृति देख हम सब आश्चर्यचकित हो जाते हैं |
वहाँ सुरक्षा कर्मी हमारे आने का मकसद पूछता है और हमसे सारी जानकारी लेकर वेलकम सेंटर की ओर भेज देता है वहा हमारा स्वागत अभिवादन नमस्कारम शब्द से होता है | हमने पहले से ही अपने रहने के लिए कॉटेज बुक करा रखा था | वह रुकने की व्यवस्था के लिए ३ तरह के कॉटेज है हमने नदी कॉटेज बुक कराया था | पहले वेलकम सेंटर में एक वाटरप्रूफ रिस्ट बैंड दिया गया ,जो की परिसर में रहते हमेशा पहनना होता है | एक टाइम टेबल दिया गया जिसमे ईशा सेंटर हो रहे कार्यक्रमों की समय का उल्लेख होता है | वहाँ सुबह 5 :30 से कार्यक्रम शुरू हो जाता |
फिर हमे बताया जाता है की यहाँ दो कुंड है सूर्य कुंड और चंद्र कुंड है |
वहां सदगुरु के द्वारा स्थापित ध्यानलिंग है ,कहते हैं उसे पूरा करने के लिए उन्हें दो जन्म लेने पड़े।
कहते हैं ध्यानलिंग में सातों चक्र जाग्रत हैं ,जबकि अमूमन शिव मंदिरों में कुछ विशेष तत्व ही जाग्रत होते हैं जो मनुष्य के भौतिक उत्थान के लिए विशेष प्रकार से प्राणप्रतिष्ठित किए जाते हैं।
ध्यानलिंग में प्रवेश करने से पहले इन कुंड में स्नान करना अच्छा होता है ,वैसे यह जरूरी नहीं है लेकिन एक आध्यात्मिक जागृति के लिए यह सहायक है।
सूर्य कुंड और चंद्र कुंड क्रमशः पुरुषों और महिलाओं के लिए बनाए गए हैं।
यह कुंड जमीन से 35 फीट नीचे एक तालाब जैसा है, जिसके पानी को ठोस किये गए पारे के लिंग से ऊर्जा वान बनाया गया है | इसमें स्नान करने के बाद अद्भुत मानसिक और शारीरिक ताजगी के साथ ग्रहण शीलता का भी एहसास होता है।
इसके बाद 7 :40 am में लिंग भैरवी की आरती में हम शामिल हुए वहा बहुत सारे विदेशी पूजा मैडिटेशन और ध्यान करते दिखाई देते है ।यहां की विशेषता है की लिंग भैरवी की पूजा महिलाओ द्वारा संपन्न की जाती है |
लिंग भैरवी एक जाग्रत देवी हैं,हीरे की आंखें चमकती रहती हैं, पुजारिन लाल रंग के वसन धारण करती हैं।
वहां प्रसाद में हमे नीम की पत्तियां और फूल दिए गए। मंदिर के बाहर दस रूपए में पायसम भी दिया जाता है जो की बहुत स्वादिष्ट मंदिर का प्रसाद होता है |
ध्यानलिंग
अब हम ध्यानलिंग की और बढ़ते है |इसके प्रवेश द्वार पर सर्वधर्म स्तम्भ है | इस स्तम्भ में सभी धर्मों के चिन्ह बने है | यह काफी आकर्षक और धार्मिक समभाव की प्रेरणा देता है |
ध्यानलिंग के आँगन में घुसते ही , बगल की दीवारों पर दक्षिण भारतीयों संतो के जीवन की झांकियां मिलती है, वालंटियर ध्यानंलिंग में लोगो को बैच के हिसाब से भेज रहे थे ,ताकि एक साथ ज्यादा भीड़ न हो।
हम भी थोड़ी देर में अंदर गए, ये गुम्बदाकार बडा हॉल बिना लोहे कंक्रीट का बना है इसे |वास्तव में ईंट, मिटटी, क्ले, चूना और कुछ हर्ब्स से मिलाकर बनाया गया है ,ये ध्यान के लिए एकदम सटीक बनाया गया है|सामने उस गुम्बदाकार हॉल में 13 फुट ऊँचा ग्रेनाइट का गोलाकार स्तम्भ लिंग के रूप में में दिखाई देता है | जिसे देखने की जिज्ञासा थी जिसमे बारे में हमने सुना था कि यहां एक नौसीखिए साधक का भी ध्यान सरलता से लग जाता है।
ध्यान लिंग
इसकी स्याह काली सतह पर सात छल्ले करीने से जडे है |लिंग के आधार पर, सात कुंडलियों वाले पत्थर के विशाल सर्प की आकृति बनी हुई है| यहाँ दीवारों के बीच 27 आभा गुफाये है,इसमें बैठकर आप ध्यान कर सकते है |
9 . 55 से 10 . 40 का समय नास्ता/लंच का होता है | जो किसी भक्त द्वारा अन्नदान किया जाता है | इसे भिक्षा हॉल कहते हैं।
ध्यानलिंग से आगे निकल कर नंदी की विशाल प्रतिमा का दर्शन होता है | यह प्रतिमा 5 फुट की मेटल की बनी है जिसके अंदर हर्ब्स भरे गए है | यह स्याह काले रंग का है ।
आप इसे नहीं छू सकते | उसके आगे एक सरोवर है जिसमे कमल और लिली के अनेक रंगो वाले फूल खिले हुए थे |
फिर हम आगे बढ़ते हैं , आगे कुछ ईशा केंद्र से जुड़ी दुकाने थी , जिसमे दवाई ,शहद ,सीडी ,चाय बिक रहे है |
क्योकि हमारे पास समय कम था, इस लिए कम समय में हमे सबकुछ देखना और समझना था | बाहर जाने के दूसरे गेट से हम बाहर आ गए ।
,वहाँ से कुछ ही दूर पर प्रसिद्ध आदियोगी की प्रतिमा थी |
मैने वहां सदगुरु को किसानों की आमदनी बढ़ाने हेतु बैलगाड़ी का उपयोग लेते देखा।
किसान अपनी बैलगाड़ी से ईशा सेंटर से अदियोगी की प्रतिमा तक टूरिस्ट या जो जल्दी में आध्यात्मिक लोग हैं उन्हें 10 रुपए लेकर छोड़ आते थे।
वहां मट्ठा,दही का भी कुछ स्वयंसेवियों द्वारा मुफ्त में वितरण हो रहा था।
हमने बैलगाड़ी की सवारी ली और वहां पहुंच गए
वेलैंगगिरि पहाड़ की तलहटी में बसा यह केंद्र और आदियोगी की प्रतिमा अद्भुत थी।
उस प्रतिमा को देखकर हम रोमांचित हो गए | मेरे पास शब्द नहीं बयां करने को की आदियोगी की इस प्रतिमा को कैसे बखान करुँ |
112 फ़ीट ,4 इंच ऊँची 24. 9 मीटर चौड़ी और 44 . 9 मीटर लम्बी मूर्ति ,दूर से ही अपनी भब्यता का अहसास दिलाती है | यह आदियोगी की सबसे ऊँची प्रतिमा है | इस प्रतिमा को पूरी तरह से स्टील से बनाया गया है | इसका वजन 500 टन है इसके अंदर तिल के बीज हल्दी पवित्र भस्म ,विभूति ,खास तरह के तेल ,रेत,अलग तरह की मिटटी भरी है | आदियोगी की प्रतिमा में 100008 मनको की रुद्राक्ष माला है।
आदियोगी के चारो ओर 621 त्रिशूल काले कपड़े में ढके हुए लगे है।
इसी के नीचे योगेश्वर लिंग है जहां सप्तऋषियों की प्रतिमाएं हैं।कहते हैं सबसे पहले शिव ने गुरु बनकर योग का ज्ञान सप्तऋषियों को दिया था।
महाशिवरात्रि को यहीं आदियोगी के प्रांगण में भव्य आयोजन होता है ,जिसमे सारी रात,ध्यान,नृत्य,संगीत,योग के कार्यक्रम होते हैं।
यहाँ बिताये हर पल मेरी जिंदगी का सबसे अविस्मरणीय पल है | लेकिन सफर का अंत करना ही होता है,इसलिए इन यादों को समेटे इस विश्वास के साथ कि मैं जल्द ही वापस आऊँगी शायद कुछ महीनो ,सालो के बाद.. ।