संप्रदायिक दंगे और उसका इलाज- 
जो लोग ऐसा ही हो के दिनों के जो सोमवार को जानते हैं उन्हें यह स्थिति देख रोना आता है। कहां थे वह दिन की स्वतंत्रता की झलक सामने दिखाई देती थी और कहां आज का यह दिन कि स्वराज्य और आज एक सपना मात्र बन गया है। बस यही तीसरा लाभ है, जो इन दंगों से अत्याचारों को मिला है। जिस के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया था, कि आज गई, कल गई वही नौकरशाही आज अपनी जड़ें इतनी मजबूत कर चुकी है कि उसे हिलाना कोई मामूली काम नहीं है।
यदि इन सांप्रदायिक दंगों की जड़ खोजें तो हमें इसका कारण आर्थिक ही जान पड़ता है। असहयोग के दिनों में नेताओं पत्रकारों ने ढेरों कुर्बानियां दी। उनकी आर्थिक दशा बिगड़ गई थी। असहयोग आंदोलन के धीमा पड़ने पर नेताओं पर अविश्वास सा हो गया जिससे आजकल के बहुत से संप्रदायिक नेताओं के धंधे चौपट हो गए। विश्व में जो भी काम होता है उसकी तह में पेट का सवाल जरूर होता है। कार्ल मार्क्स के तीन बड़े सिद्धांतों में से एक मुख्य सिद्धांत है। इसी सिद्धांत के कारण ही तबलीग,तन किम, शुद्धि आदि संगठन शुरू हुए और इसी कारण से आज हमारी ऐसी दुर्दशा हुई ,जो अवर्णनीय है।
बस सभी दंगों का इलाज यदि कोई हो सकता है तो वह भारत की आर्थिक दशा में सुधार से ही हो सकता है। दरअसल भारत के आम लोगों की आर्थिक दशा इतनी खराब है कि एक व्यक्ति दूसरे को चवन्नी देकर किसी और को अपमानित करवा सकता है। भूख और दुख से आतुर होकर मनुष्य भी सिद्धांत ताक पर रख देता है सच है मरता क्या न करता। लेकिन वर्तमान स्थिति में आर्थिक सुधार होना अत्यंत कठिन है क्योंकि सरकार विदेशी हैं और लोगों की स्थिति को सुधारने नहीं देती। इसलिए लोगों को हाथ धोकर इसके पीछे पड़ जाना चाहिए और जब तक सरकार बदल ना जाए चैन के साथ ना लेना चाहिए।
लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग चेतना की जरूरत है। गरीब मेहनतकश किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूंजीपति हैं। इसलिए तुम्हें इनके हाथ कंडोम से बच कर रहना चाहिए और इन के हत्थे चढ़ कुछ ना करना चाहिए। संसार के सभी गरीबों के चाहे वह किसी भी जाति रंग धर्म या राष्ट्र के हो अधिकार एक ही है। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम रामधन नस्ल और राष्ट्रीयता हो देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताकत अपने हाथों में लेने का प्रयत्न करो। इन यत्नों से तुम्हारा नुकसान कुछ नहीं होगा, इसे किसी दिन तुम्हारी जंजीरें कट जाएंगे और तुम्हें आर्थिक स्वतंत्रता मिलेगी।
जो लोग विरोध का इतिहास जानते हैं उन्हें मालूम है कि जार के समय वहां भी ऐसे ही तिथियां थी वहां भी कितने ही समुदाय थे जो परस्पर क्यों तंग करते रहते थे । लेकिन जिस दिन से वह श्रमिक शासन हुआ है वहां नक्शा ही बदल गया है। अब वहां कभी दंगे नहीं हुए। अब वहां सभी को ‘इंसान’ समझा जाता है ‘धर्मजन’ नहीं जार के समय लोगों की आर्थिक दशा बहुत ही खराब थी। इसलिए सब दंगे फसाद होते थे। लेकिन अब रुसीयों की आर्थिक दशा सुधर गई है, और उनमें वर्ग चेतना आ गई है इसलिए वहां से कभी किसी दंगे की खबर नहीं आई। 
इन दंगों में वैसे तो बड़े निराशाजनक समाचार सुनने में आते हैं लेकिन कोलकाता के दंगों में एक बात बहुत खुशी की सुनने में आई वह यह कि वहां दंगों में ट्रेड यूनियन के मजदूरों ने हिस्सा नहीं लिया और ना ही वह परस्पर गुत्थमगुत्थआ ही हुए, वरन् सभी हिंदू मुसलमान बड़े प्रेम से कारखानों आदि में उठते बैठते हैं और दंगे रोकने के लिए यत्न करते रहें। यह इसलिए कि उनमें वर्ग चेतना थे और वे अपने वर्ग हित को अच्छी तरह पहचानते थे। चेतना का यह सुंदर रास्ता है जो सांप्रदायिक दंगे रोक सकता है।
यह खुशी का समाचार हमारे कानों को मिला है कि भारत के नवयुवक अब वैसे धर्मों से जो परस्पर लड़ाना होगी ना करना सिखाते हैं तंग आकर हाथ धो रहे हैं। उनमें इतना खुलापन आ गया है कि वह भारत के लोगों को धर्म की नजर से हिंदू मुसलमान ऐसे ग्रुप में नहीं बने थे सभी को पहले इंसान समझते हैं फिर भारतवासी । भारत के युवकों में इन विचारों के पैदा होने से पता चलता है कि भारत का भविष्य सुनहला है। भारत वासियों को इन दंगों आदि को देखकर घबराना नहीं चाहिए। उन्हें यत्न करना चाहिए कि ऐसा वातावरण ही बने और दंगे हो ही नहीं।
1914 – 15 के शहीदों ने धर्म को राजनीतिक से अलग कर दिया था। वह समझते थे कि धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है इसमें दूसरे का कोई दखल नहीं। ना ही इसे राजनीतिक में घुसाना चाहिए क्योंकि यह सरबत को मिलकर एक जगह काम नहीं करने देता। इसलिए गदर पार्टी जैसे आंदोलन एकजुट व एक जान रहे जिसमें सीख बढ़-चढ़कर फांसी पर चढ़े और हिंदू मुसलमान भी पीछे नहीं रहे।
इस समय कुछ भारतीय नेता भी मैदान में उतरे हैं जो धर्म को राजनीति से अलग करना चाहते हैं। झगड़ा मिटाने का यह भी एक सुंदर इलाज है, और हम इसका समर्थन करते हैं। 
यदि धर्म को अलग कर दिया जाए तो राजनीतिक पर हम सभी करते हो सकते हैं। धर्मों में हम चाहे अलग अलग ही रहें।
हमारा ख्याल है कि भारत के सच्चे हमदर्द हमारे बताएं इलाज पर जरूर विचार करेंगे और भारत का इस समय जो आत्मघात हो रहा है उससे हमें बचा लेंगे। 
क्रमशः 
गौरी तिवारी 
भागलपुर बिहार
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