विकासशील अपने भारत में ,हम त्यागें ऐसी कुप्रथा।
बालविवाह, मृत्युभोज, दहेजप्रथा, यह पर्दाप्रथा।।
विकासशील अपने भारत में—————–।।
जीने दो इनको बचपन, उम्र है शिक्षा पाने की इनकी।
खिलने दो कलियों को, करो नहीं बर्बाद जिंदगी इनकी।।
मत करो इन फूलों का सौदा, अपने मतलब के लिए।
करके इनका बालविवाह, करो नहीं नष्ट इनकी सत्ता।।
विकासशील अपने भारत में——————–।।
अपने जिगर के टुकड़े को, सौंपना यूँ किसी घर को।
कर देता है हृदय विचलित, विदाई बेटी की सब को।।
यह कन्यादान ही महादान है, फिर दहेज किस बात का।
कर देती है कई घर बर्बाद, समाज मे यह दहेज प्रथा।।
विकासशील अपने भारत में——————–।।
एक ख्वाब संजोकर माँ- बाप,लुटा देते हैं सब सन्तान पर।
मगर नहीं आने देते दुःख, मॉं- बाप अपनी संतान पर ।।
बेकदर कर देती हैं मॉं-बाप को , बुढ़ापे में औलाद क्यों।
मॉं-बाप की मृत्यु पर मृत्युभोज, एक जश्न है ऐसी प्रथा।।
विकासशील अपने भारत में——————–।।
अबला नहीं, सबला है नारी, हर मंजिल इसने पाई है।
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति का ताज नारी पाई है।।
इंद्रा गांधी, झांसी रानी,पदमनी,पन्नाधाय,एक भगवती है।
मत रखो पर्दे में नारी को,किस काम की यह पर्दा प्रथा।।
विकासशील अपने भारत में——————–।।
साहित्यकार एवं शिक्षक –
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)