गमो के शहर में,
हम मुस्कुराहट ढूढ रहे थे,
घना था धूप मगर हम छाया ढूढ रहे थे,
अब हम से न पूछो यारो पता हमारा ,
हम अपने ही शहर में,
अपना मकान ढूढ रहे थे।।
सजाया था कभी मुहब्बत से घर अपना,
आशिकों के शहर में कभी नाम ,
हमारा भी हुआ करता था।
आज सब गैर हो गए अपने ही शहर में
अब हम ग़ैरों के बीच में,
अपना रहनुमा ढूढ रहे थे।।
खुदक़िस्मत समंझते थे हम खुद को
मुहहबत जो तुमसे हुई थी,
दुनिया हसीन हो गयी थी एक तेरे आने से ,
लेकिन हमे क्या पता था,
की खुदगर्जी के बाजार में हम वफ़ा ढूढ रहे थे।।
तन्हा है हम जमाने मे अब,
खामोशिया मुझे भाने लगी है,
अपने आप मे अब रहता हूँ मै,
गमो से रिश्ता कुछ ऐसा जुड़ गया है।।