कोई ना यह जानता है जग में,
कब तक किसका ठिकाना है।
किसका रहना और है बाकी,
किसको पहले चले जाना है।
माता व पिता चले गए दोनों,
एक दिन सबको ही जाना है।
बची हुई जो भी सांसें हैं यारा,
प्रेम मुहब्बत से ही बिताना है।
नोक झोंक तो होता ही रहता,
1 दूजे से रूठने का बहाना है।
तुम रूठो जब मैं तुम्हें मना लूँ,
मैं जब रूठूँ तो तुम्हें मनाना है।
पति-पत्नी का प्यार है यह तो,
इसको जानता सारा जमाना है।
अभी तो ये घर परिवार भरा है,
बच्चे ही खुशियों का बहाना हैं।
जिम्मेदारी का है बोझ भी सर पे,
सब को जिलाना व खिलाना है।
इन खेलते कूदते बढ़ते बच्चों को,
पढ़ाना लिखाना जीवन बनाना है।
इस जिम्मेदारी बाद आगे बढ़ कर,
बच्चों के शादी ब्याह भी रचाना है।
रहने को एक छोटा आशियाना हो,
उसको भी यार जीवन में बनाना है।
सब कुछ तो ईश्वर कृपा से हो गया,
अब भजन करें गंगा मुझे नहाना है।
प्यारी बेटियों को तो दामाद ले गए,
प्यारी बहू भी ले गयी प्रिय बेटे को।
अब रहना है हमको तुमको अकेले,
आगे जीना है और बनाना खाना है।
फिर काहे की अब गिला शिकायत,
जब हंसी ख़ुशी से समय बिताना है।
याद है जब तुम भांवर फेर के आयी,
साथी तुमको ही तो साथ निभाना है।
याद करो उन सब सातों बचनों को,
लिये साथ में थे जो हमसब दोनों ने।
इस ढ़लती उमर में मेरे जीवन साथी,
हम दोनों को उसे दिल से निभाना है।
कोई नहीं होता इस उमर का साथी,
हम ही हैं एक दूजे की सच्ची लाठी।
जब तक साँस चलेगी हम दोनों की,
हमें एकदूजे का ही साथ निभाना है।
लगा है जग में जो माया का ये मेला,
यहाँ जो देखने आया है उसे जाना है।
कहिये प्रिये क्या मैं गलत कह रहा हूँ,
सभी को आगे पीछे ही चले जाना है।
ये घर ये दुनिया यारा सब है टेम्परेरी,
यहाँ से अपने परमानेंट घर जाना है।
छूटेगा जब ये लख चौरासी से तो ही,
ये आत्मा परमात्मा में मिल जाना है।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.