सार्थक और सहज दोनों ही स्नातक के प्रथम वर्ष में हैं।जब भी सार्थक परेशान होता है तो सहज से अपने मन की बात करने उसके घर चला आता है।आज भी घरवालों की बातें से दुखी हो अपने परम मित्र सहज के   घर  आ उससे  बात करने लगा।सहज ने उससे पूछा- क्या बात है सार्थक,तुम इतने उदास क्यों हो?सार्थक उससे बोला- क्या बताऊँ यार, मेरे घर वाले कितना भी आधुनिक होने का ढोंग कर लें पर रहेंगे वही दकियानूसी विचार वाले। सहज ने कहा-क्या हुआ,ऐसा क्यों बोल रहे हो? सार्थक बताने लगा, सुहास भाई के अचानक चले जाने के बाद सबको भाभी को दो वक्त की रोटी खिलाना भारी पड़ रहा है। सब उनको जैसे-तैसे घर से भगाना  चाहते हैं।आज पापा ने भाभी के लिए एक लड़का देखा है।उसकी शक्ल भी ढंग की नहीं,ऊपर से खाने-पीने का ऐब भी है।उम्र का अंतर भी बहुत ज्यादा है उनके बीच। दो बच्चों का पिता भी है।बताओ जरा ये क्या बात हुई? यदि लड़की विधवा है तो फिर उसे किसी भी गये-गुजरे से बाँध दिया जाएगा क्या?क्या उनके योग्य कोई अविवाहित नहीं मिल सकता? पता है सहज  यदि मैं इस योग्य होता तो जरूर कर लेता उनसे शादी।पर किसी अयोग्य से उनका विवाह न होने देता।तभी सहज के पापा आ गए और सहज से कहने लगे- बेटा, तुम्हारी बात सुनी मैंने। तुम्हारी बात से सहमत भी हूँ। तुम अपनी भाभी के बारे में बताओ। यदि कोई मेरी नजर में योग्य व्यक्ति होगा तो तुम्हारे पापा को बताऊँगा।सार्थक  ने अपनी भाभी के विषय में आवश्यक जानकारी दे दी। अगले दिन ही सहज  के मम्मी, पापा, एक सुदर्शन व्यक्तित्व को साथ ले सहज के घर पहुँचे। उन्होंने उस लड़के के विषय में जानकारी देते हुए कहा-ये मेरा भांजा है। सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। ये एक  मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है। अपने  पापा के जाने के माँ को अकेला नहीं छोड़ना चाहता,इसलिए  यथाशीघ्र विवाह करना चाहता है।ये ऐसी जीवनसाथी चाहता है जो इसकी माँ को अपनी माँ की तरह ही प्रेम, देखभाल और आदर दे। मेरी बहन  का स्वास्थ्य भी कुछ ठीक नहीं रहता।यदि आपको मेरा भांजा योग्य लगे तो आप अपनी बिटिया जैसी बहु को हमारे घर की लक्ष्मी बना दें। सहज के पिता बोले- आपका भांजा तो लाखों में एक है फिर एक विधवा से विवाह क्यों? सार्थक के पापा बोले- देखिए भाईसाहब,विधवा होना तो विधाता का लेख था जिसे कोई नहीं मिटा सकता।बाकी आपकी बिटिया गुणों की खान है और हमें ऐसी ही गृहलक्ष्मी  चाहिए थी। सवालों से संतुष्ट हो सहज के पापा ने ये रिश्ता पक्का कर एक नई सोच को विकसित होने को धरा दे दी।
आशा झा सखी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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