जंगल में मोर तो नाचा, मगर किसने वह देखा।
जंगल में मंगल तो हुआ, मगर किसने वह देखा।।
जंगल में मोर तो नाचा—————।।
नाम तो उसी का होता है , प्यार जो सबको करता है।
हरता है दुःख जो औरों के, सम्मान जो सबका करता है।।
प्यार वो ही पवित्र है, लोगों को जिसने स्वीकारा।
आया जो दूसरों के काम, सम्मान जिसमें सबने देखा।।
जंगल में मोर तो नाचा ————————।।
जीवन देने में किसी को, बहाता है कोई खून को।
चालाक लोग कहते हैं अपना,बहे किसी के खून को।।
मिटा देते हैं उसका नाम, करके गन्दी राजनीति।
वही है पूजने योग्य, जिसका बलिदान सबने देखा।।
जंगल में मोर तो नाचा—————-।।
जमाते हैं चोरी – छुपके , महफिलें शराब – शबाब की।
सच में ऐसे ही लोगों ने , जिंदगी औरों की खराब की।।
बनते हैं ऐसे ही मसीहा, कलयुग में इस धरती पर।
पापी- पियक्कड़ लोगों की, दुनिया को किसने देखा।।
जंगल में मोर तो नाचा—————-।।
साहित्यकार एवं शिक्षक- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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