नौजवान भारत सभा लाहौर का घोषणा पत्र (अंतिम भाग) –
आगे भगत सिंह कहते हैं युवकों के जीवन अनवरत असफलताओं के जीवन हो सकते हैं-  गुरुगोविंद सिंह को आजीवन जिन नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, हो सकता है उससे भी अधिक
 नारकिए परिस्थितियों का सामना करना पड़े। फिर भी उन्हें यह कहकर कि अरे ,यह सब तो भ्रम था,  पश्चात नहीं करना होगा। 
नौजवान दोस्तों इतनी बड़ी लड़ाई में अपने आप को अकेला पाकर हताश मत होना। अपनी शक्ति को पहचानो, अपने ऊपर भरोसा करो। सफलता आपकी है धनहीन  असहाय एवं साधन ही अवस्था में भाग्य आजमाने के लिए अपने पुत्र को घर से बाहर भेजते समय जेम्स गैरीबाल्डी की महान जननी ने उससे जो शब्द कहे थे (उन्हें )याद रखो। उसने कहा “दस में से नौ बार एक नौजवान के साथ जो सबसे अच्छी घटना हो सकती है वह यह है ,कि उसे जहाज की छत पर से समुद्र में फेंक दिया जाए ताकि वह
 तैरकर या डूबकर स्वयं अपना रास्ता तय करें ” प्रणाम है उस मां को ,जिसमें यह शब्द कहें और प्रणाम है उन लोगों को जो इन शब्दों पर अमल करेंगे। 
इतालवी पुनरुत्थान के प्रसिद्ध विद्वान मैजिनी ने एक बार कहा था “सभा महान राष्ट्रीय आंदोलनों का शुभारंभ जनता के विख्यात या अनजाने, गैर प्रभावशाली व्यक्तियों से होता है, जिसके पास समय और बाधाओं की परवाह न करने वाला विश्वास तथा इच्छाशक्ति के अलावा और कुछ नहीं होता जीवन की नौका को लंगर उठाने दो। उसे सागर की लहरों पर तैरने दो और फिर- 
‘लंगर ठहरे हुए छिछले पानी में पड़ता है
विस्तृत और आश्चर्यजनक सागर पर विश्वास करो
जहां ज्वार हर समय ताजा रहता है- 
और शक्तिशाली धाराएं स्वतंत्र होती है-
वहां अनायास ,ऐ नौजवान कोलंबस-
सत्य का तुम्हारा नया विश्व हो सकता है। ‘
मत हिचको , अवतार के सिद्धांत को लेकर अपना दिमाग परेशान मत करो और उसे तुम्हें हतोत्साहित मत करने दो। हर व्यक्ति महान हो सकता है बशर्ते कि वह प्रयास करें। अपने शहीदों को मत भूलो। करतार सिंह एक नौजवान था फिर भी बिस वर्ष से कम की आयु में ही देश की सेवा के लिए आगे बढ़ कर मुस्कुराते हुए वंदे मातरम के नारे के साथ वह फांसी के तख्ते पर चढ़ गया। भाई बालमुकुंद और अवधबिहारी दोनों ने ही जब ध्येय  के लिए जीवन दिया तो वे नौजवान थे। वे तुममे से ही थे। तुम्हें भी वैसा ही ईमानदार देशभक्त और वैसा ही दिल से आजादी को प्यार करने वाला बनने का प्रयास करना चाहिए जैसे कि वह लोग थे।
सब्र और होशो हवास मत खोओ, साहस और आशा मत छोड़ो। स्थिरता और दृढ़ता को स्वभाव के रूप में अपनाओ। 
नौजवानों को चाहिए कि वे स्वतंत्रता पूर्वक गंभीरता से शांति और सब्र के साथ सोचे। उन्हें चाहिए कि वे भारतीय स्वतंत्रता के आदर्श को अपने जीवन के एकमात्र लक्ष्य के रूप में अपनाएं। उन्हें अपने पैरों पर खड़े होना चाहिए । उन्हें अपने आप को बाहरी प्रभावों से दूर रहकर संगठित करना चाहिए। उन्हें चाहिए कि मक्कार तथा बेईमान लोगों के हाथों में ना खेले, जिनके साथ उनकी कोई समानता नहीं है और जो हर नाजुक मौके पर आदर्श का परित्याग कर देते हैं। उन्हें चाहिए कि संजीदगी और इमानदारी के साथ “सेवा, त्याग ,बलिदान “को अनुकरणीय वाक्य के रूप में अपना मार्गदर्शक बनाएं। याद रखिये “राष्ट्र निर्माण के लिए हजारों अज्ञात स्त्री पुरुषों के बलिदान की आवश्यकता होती है जो अपने आराम व हितों के मुकाबले ,तथा अपने एवं अपने 
प्रियजनों के प्राणों के मुकाबले देश के अधिक चिंता करते हैं। 
यह घोषणा 6-4 -1928 को भगत सिंह के द्वारा किया गया था। 
क्रमशः 
गौरी तिवारी
 भागलपुर बिहार
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