धर्म और हमारा स्वतंत्रता संग्राम (प्रथम भाग) – 
मई 1928 के ‘किरती’ में ये लेख छपा । जिसमें भगत सिंह ने धर्म की समस्या पर प्रकाश डाला- उन्होंने इस लेख में लिखा था कि अमृतसर में 11- 12- 13 अप्रैल को राजनीतिक कॉन्फ्रेंस हुई और साथ ही युवकों की भी कॉन्फ्रेंस हुई । दो- तीन सवालों पर इसमें बड़ा झगड़ा और बहस हुई। उसमें से एक सवाल धर्म का भी था। वैसे तो धर्म का प्रश्न कोई नहीं उठाता किंतु संप्रदायिक संगठनों के विरुद्ध प्रस्ताव पेश हुआ और धर्म की आड़ लेकर उन संगठनों का पक्ष लेने वाले ने स्वयं को बचाना चाहा। वैसे तो यह प्रश्न और कुछ देर दबा रहता लेकिन इस तरह सामने आ जाने से स्पष्ट बातचीत हो गई और धर्म की समस्या को हल करने का प्रश्न भी उठा। प्रांतीय कांफ्रेंस की विषय समिति में भी मौलाना जफर अली साहब के पांच-  सात बार खुदा- खुदा करने पर अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि इस मंच पर आकर खुदा – खुदा ना कहें। आप धर्म के मिशनरी हैं तो मैं धर्महीनता का प्रचारक हूं। बाद में लाहौर में भी इसी विषय पर नौजवान सभा ने एक मीटिंग की। कई भाषण हुए और धर्म के नाम का लाभ उठाने वाले, और यह सवाल उठ जाने पर झगड़ा हो जाने से डर जाने वाले ,कई सज्जनों ने कई तरह की नेक सलाह दीं। 
सबसे जरूरी बात जो बार-बार कहीं गई और जिस पर श्रीमान भाई अमर सिंह जी झबाल ने विशेष जोर दिया, वह यह थी कि धर्म के सवाल को छेड़ा ही ना जाए। बड़ी नेक सलाह है !यदि किसी का धर्म बाहर लोगों की सुख शांति में कोई विघ्न डालता हो तो किसी को भी उसके विरुद्ध आवाज उठाने की जरूरत हो सकती हैं ?लेकिन सवाल तो यह है कि अब तक का अनुभव क्या बताता है? पिछले आंदोलन में भी धर्म का यही सवाल उठा और सभी को पूरी आजादी दे दी गई। यहां तक कि कांग्रेस के मंच से भी आयतें और मंत्र पढ़े जाने लगे। उन दिनों धर्म में पीछे रहने वाला कोई भी आदमी अच्छा नहीं समझा जाता था। फलस्वरूप संकीर्णता बढ़ने लगी । जो दुष्परिणाम हुआ वह किससे छिपा है? अब राष्ट्रवादी या स्वतंत्रता प्रेमी लोग धर्म की असलियत समझ गए हैं और वही उसे अपने रास्ते का रोड़ा समझते हैं।
बात यह है कि क्या धर्म घर में रखते हुए भी , लोगों के दिलों में भी भेदभाव नहीं बढ़ाता ? क्या उसका देश के पूर्ण स्वतंत्रता हासिल करने तक पहुंचने में कोई असर नहीं पड़ता ? इस समय पूर्ण स्वतंत्रता के उपासक सज्जन धर्म को दिमागी गुलामी का नाम देते हैं। वह यह भी कहते हैं कि बच्चे से यह कहना कि ईश्वर ही सर्वशक्तिमान है, मनुष्य कुछ भी नहीं ,मिट्टी का पुतला है। बच्चों को हमेशा के लिए कमजोर बनाना है। उसके दिल की ताकत और उसके आत्मविश्वास की भावना को ही नष्ट कर देना है। लेकिन इस बात पर बहस ना भी करें और सीधे अपने सामने रखे दो प्रश्नों पर विचार करें तो हमें नजर आता है कि धर्म हमारे रास्ते में एक रोड़ा है। मसलन हम चाहते हैं कि सभी लोग एक  हो। उनमें पूंजीपतियों के ऊंच-नीच की छूत अछूत का कोई विभाजन ना रहे। लेकिन सनातन धर्म इस भेदभाव के पक्ष में है। बीसवीं सदी में भी पंडित, मौलवी  जैसे लोग भंगी के लड़के के हार पहनाने पर कपड़ों सहित स्नान करते हैं और अछूतों को जनेऊ तक देने की इनकारी है। यदि इस धर्म के विरुद्ध कुछ ना कहने की कसम ले लें तो चुप होकर घर बैठ जाना चाहिए नहीं तो धर्म का विरोध करना होगा। लोग यह भी कहते हैं कि इन बुराइयों का सुधार किया जाए। बहुत खूब! अछूत को स्वामी दयानंद ने जो मिटाया तो वह भी चार वर्गों से आगे नहीं जा पाए। भेदभाव तो फिर भी रहा है। गुरुद्वारे जाकर जो सिख ‘राज करेगा खालसा’ गाए और बाहर आकर पंचायती राज की बातें करें, तो इसका मतलब क्या है? 
धर्म तो यह कहता है कि इस्लाम पर विश्वास ना करने वाले को तलवार के घाट उतार देना चाहिए और यदि इधर एकता की दुहाई दी जाए तो परिणाम क्या होगा? हम जानते हैं कि अभी कई और बड़े ऊंचे भाव की आयतें  और मंत्र पढ़कर खींचतान करने की कोशिश की जा सकती हैं, लेकिन सवाल यह है कि इस सारे झगड़े से छुटकारा ही क्यों ना पाया जाए? धर्म का पहाड़ तो हमें हमारे सामने खड़ा नजर आता है। मान ले कि भारत में स्वतंत्रता संग्राम छिड़ जाए । सेनाएं आमने-सामने बन्दुकें ताने खड़ी हो, गोली चलने ही वाली हो और यदि उस समय कोई मोहम्मद गौरी की तरह जैसे ही कहावत बताई जाती है। आज भी हमारे सामने गायें, सुअर, वेद पुराण आदि चीजें खड़ी कर दें, तो हम क्या करेंगे ?यदि पक्के धार्मिक होंगे तो अपना बोरिया – बिस्तर लपेटकर घर बैठ जाएंगे । धर्म के होते हुए हिन्दू- सिख गाय पर और मुसलमान सुअर पर  गोली नहीं चला सकते। धर्म के बड़े पक्के इंसान तो उस समय  सोमनाथ के कई हजार पंडो की तरह ठाकुरों के आगे लोटते रहेंगे और दूसरे लोग धर्महीन या अधी- काम कर जाएंगे। तो हम किस निष्कर्ष पर पहुंचे धर्म के विरुद्ध सोचना ही पड़ता है। लेकिन यदि धर्म के पक्ष वालों के तर्क भी सोचे जाए तो वह यह कहते हैं कि दुनिया में अंधेरा हो जाएगा ,पाप बढ़ जाएगा । बहुत अच्छा, इसी बात को ले ले। 
क्रमशः
गौरी तिवारी 
भागलपुर बिहार
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