सुबह सुबह न जाने क्या बात हो गई,
श्रीमती सी मुझे खफ़ा हो गई,,,।।
पूछ पूछ कर मै थक सा गया हूँ,
न जाने क्या ख़ता मुझसे जो हो गयी है।।
कब से आगे पीछे श्रीमति के घूम रहा हूँ,,
जो गलती नहीं हुई है मुझसे उसकी भी
माफ़ी माँग रहा हूँ,।।
लेकिन आज वो जैसे ठान कर बैठी है,
नही सुनेगी एक भी मेरी,
वो कब से मुझे जता रही है।।
कुछ तो बोलो मेरी प्राणों से प्रिय रानी
ऐसे मौन रहकर न कर अपनी मनमानी
जो बोलो वो दिला दूँगा,
क्या जयपुर क्या बनारस
सब का बाजार यही लगवा दूँगा,,,
सुनकर शॉपिंग की बात
मानो उसमे चेतना आ गयी हो।
झट से मेरा हाथ पड़कर मुझे
अपने पास बैठा लेती है,
और बड़े प्यार से श्रीमती
तब मुस्कुरा कर मुझे देखती है।।।
सामने चल रहे टीवी के विज्ञापन की ओर
धीरे से इशारा करती है,,,
नया खुला शोपिंग मॉल
चलो सजन फिर चलते है आज,,,
तब सारा माजरा मैं समंझ चुका था
की चुप रहकर मुझे छला जा चुका था।।
वह तो थी विज्ञापन में लीन,
मुझे लगा मुझसे हो गयी है
कोई भारी भूल यार
लेकिन अब क्या किया जा सकता था,
विज्ञापन मुझे ठग जो चुका था
सुमेधा शर्व शुक्ला