जीवन एक पर हज़ारों ख्वाहिशों का सबका सपना है
यहां पर रहता जुदा सबका अंदाज़
अपना अपना है।
कोई गमों की झील को गले लगा
मुस्कुराता है,
खुशियों का समन्दर पा कर भी कोई ना चैन पाता है।
आशाओं के फूलों की महक से कोई
मुरझा जाता है,
निराशाओं की टहनियाँ बटोर कोई
उम्मीदों का घर बनाता है।
शिकायतों की पोटली का बोझ सिर पर रख कोई थक जाता है,
कोई नज़रअंदाज़ कर एब नये रस्तों पर बढ़ता जाता है।
नसीब से अपने कोई विचलित हो मन को ठेस पहुँचाता है,
तक़दीर का खेला कोई अपनी ही मुट्ठी
में छुपाता है।
दिल ही दिल में कोई न जाने कितने राज़ दफनाता है,
नज़ारा एक ही पर सबकी नज़र से ये
अलग नज़र आता है।
स्वरचित
शैली भागवत ‘आस’