ईश्वर की अनुपम सृष्टि न्यारी।
विधाता की रचना है नारी।।
प्रेम करुणा मर्यादा सहनशीलता रखकर।
करती सबकी हर पल रखवारी।
सजगता से करती हर काम अपना।
नहीं देखती अब है किसकी बारी।।
लगी कर्तव्य पथ पर सतत्।
उठाया कर में बोझ भारी।।
मिले कितना धोखा न छोडे़ वो हँसना।
इसी गुण पे रीझी है दुनिया सारी।।
समस्त महिलाओं को समर्पित स्वरचित मौलिक प्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित डॉ आशा श्रीवास्तव जबलपुर