बधाई नही अधिकार चाहिए
मैं नारी हूँ, मुझे संम्मान चाहिए ।,।
समान है जब हम दोनों तो
फिर ये भेदभाव की बेड़िया क्यो,।।
क्यो सब लोकलाज आयी मेरे हिस्से
क्यो हर बंधन से आज तू
सवाल वही मेरे पुराने है,
लेकिन अब हर सवाल का चाहिए
यदि मान बढ़ाना चाहते हो मेरा
तो एक शुरुआत अपने घर से करो
जिसकीं दुनिया तुझमे बसती है,
पहले ख़ुद को उंसके नाम करो।।
बेटी को भार न समझकर
उसे अपना अभिमान कहो।।
लक्ष्मी बनकर जिसने जन्म लिया है
उसे तुम चंडी कहो,
धधकती अंगारों से जब देखे वो,
दरिंदों की ओर नजरे सब की झुक जाए
उसकी आँखों मे तुम ऐसे सोले भरो।।
खत्म करो संघर्ष उसका
उंसके अस्तित्व की खोज में
वही लक्ष्मी,वही सरस्वती, वही दुर्गा के रूप में,
कभी बेटी तो कभी मॉ बनकर तुम्हे सँवारती है
एक नारी होती है गुणों की खान
जो सबपर प्यार बरसाती है,
दो पंख उसे विश्वास का
उन्मुक्त गगन में उड़ने दो
सिर ऊँचा जग में वो करेग
बस उसे तुम्हारा साथ चाहिए।।
सुमेधा शर्व शुक्ला