नारी अब तेरे लिए , खुले सभी हैं द्बार।
आज सफलता मिल रही, नहीं रही अब हार।
घर की चौखट लांघ के, उड़े आज आकाश।
संस्कारों के नाम से, डालो मत तुम पाश।।
चूनर ओढ़े लाज की, उसे बना के पंख।
सपनों को पूरा करे, बजे जीत का शंख।।
कविता झा ‘काव्या कवि’
रांची, झारखंड