बेटी हो तुम इस घर की
बेटी बन तुम उस घर रहना।
पर उठे हाथ तुझ पर कभी
तो चंडी रूप धर लेना ।
आभूषणों के लोग में
तुम कभी मत फसना ।
भ्रम जाल है यह जीवन के
इन पर गर्व नहीं करना ।
सुंदर हो तो सुंदरता का
घमंड कभी मत करना।
देख आईने में स्वयं को
तन पर कभी मत रीझना ।
बेटी हो तुम इस घर की
बेटी बन तुम उस घर रहना।
भूख मिटाना अग्नि से सबकी
पर खुद अग्नि में मत जलना ।
आदर श्रद्धा रखना सभी में
पर स्वाभिमान स्वयं का मत खोना।
कोमलंगी हो तुम पर
कमजोर कभी मत दिखना ।
हरदम पुष्प बन महकना
पर वज्र बनकर रहना ।
अंतिम सीख है यह मेरी तुम्हें
नारी हो नारी सी रहना ।
पर नारी सी मत दिखना ,
जले आग दहेज की तो,
फिर…………….।
गरिमा राकेश गौतम
कोटा राजस्थान