गोरैया एक छोटी चिड़िया है। यह हल्की भूरे रंग या सफेद रंग में होती है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है। नर गोरैया का पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होता है। १४ से १६ से.मी. लंबी यह चिड़िया मनुष्य के बनाए हुए घरों के आसपास रहना पसंद करती है। यह लगभग हर तरह की जलवायु पसंद करती है पर पहाड़ी स्थानों में यह कम दिखाई देती है। शहरों, कस्बों,गाँवों, और खेतों के आसपास यह बहुतयात से पाई जाती है। नर गौरैया के सिर का ऊपरी भाग, नीचे का भाग और गालों पर पर भूरे रंग का होता है। गला चोंच और आँखों पर काला रंग होता है और पैर भूरे होते है। मादा के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता है। नर गौरैया को चिड़ा और मादा चिड़ी या चिड़िया भी कहते हैं।
पिछले कुछ सालों में शहरों में गौरैया की कम होती संख्या पर चिन्ता प्रकट की जा रही है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। सुपरमार्केट संस्कृति के कारण पुरानी पंसारी की दूकानें घट रही हैं। इससे गौरेया को दाना नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिड़िया की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप गोरैया तेजी से विलुप्त हो रही है। गौरैया को घास के बीज काफी पसंद होते हैं जो शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से मिल जाते हैं। ज्यादा तापमान गौरेया सहन नहीं कर सकती। प्रदूषण और विकिरण से शहरों का तापमान बढ़ रहा है। कबूतर को धार्मिक कारणों से ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। चुग्गे वाली जगह कबूतर ज्यादा होते हैं। पर गौरैया के लिए इस प्रकार के इंतज़ाम नहीं हैं। खाना और घोंसले की तलाश में गौरेया शहर से दूर निकल जाती हैं और अपना नया आशियाना तलाश लेती हैं। गोरैया के बचाने की कवायद में दिल्ली सरकार ने गौरैया को राजपक्षी घोषित किया है। इनकी घटती संख्या का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि जंगल बहुत कम होता जा रहा है। अतः मांसाहारी पक्षियों ने शहरों गावों जहां जहां भी गौरैया चिड़ियाऐ हजारों लाखों की संख्या में निवास करती है वहा अपना धावा बोल दिया है अक्सर हमारे घरो छतों गली मोहल्लों में छोटे बाज बैठे हुऐ दिखाई देते हैं। जो की बहुत ही सटीकता से इनका शिकार कर रहे है। गौरेया चिड़िया का सामना इन शिकारी पक्षियों से पूर्व मे नही हुआ है। साथ ही उनमे आत्म रक्षार्थ हेतु परोक्ष अपरोक्ष रूप से कुछ भी नहीं है।आज शहरों मे लुप्त प्राय होती जा रही है।
-प्रो.शरद नारायण खरे
मंडला