कभी कभी तो , ऐसा भी हो जाता है।
सोचते नहीं जो, वैसा भी हो जाता है।।
कभी कभी तो——————–।।
भरोसा नहीं, कब बरसात होगी।
कब अंधेरा मिटेगा, कब सुबह होगी।।
दिन में भी कई दफा, मौसम बदल जाता है।।
कभी कभी तो———————-।।
सूखे दरख्तों पर भी, मिल जाते हैं फूल।
रेगिस्तान में भी,कहीं गुलशन – ए- गुल।।
नहीं उम्मीद जिस जगहां, नीर मिल जाता है।
कभी कभी तो———————।।
जिनसे नहीं उम्मीद कभी ,इमदाद की।
बचाता है वो हो किश्ती, लहरों में आप की।।
अजीज दोस्त तो तब , कहीं गुम हो जाता है।
कभी कभी तो —————————-।।
साहित्यकार एवं शिक्षक.
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)