अब है ज़माना आग पानी का,
विरोधाभास भरी ज़िंदगानी का,
स्वार्थ से लिप्त ह्रदय हुए सबके,
वर्चस्व हुआ काम में बेईमानी का।
इस तरह ही चल रहा अब संसार,
कहीं जीत अपनी तो कहीं है हार,
विरोध से पार फिर भी है जीना,
कहाँ भरोसा क्षणभंगुर ज़िन्दगानी का।
अब है ज़माना आग पानी का।
ईर्ष्या, द्वेष, कलह से दूर सदा रहकर,
अपने भावों को सदा अपनों से कहकर,
बीज प्रेम का हमेशा बढ़ाते जाना है,
नायक बनना सदा अच्छी कहानी का।
अब है ज़माना आग पानी का।
पल-पल यह भी बीत जाएगा,
ना फ़िर लौट कभी यह आएगा,
सुख, दुःख भरे जीवन में मेहकों तुम,
मज़ा लो जीवन की हर रवानी का,
अब है ज़माना आग पानी का।
पूजा पीहू
दिल्ली
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