देख लो आज की महफ़िल, नजीर मेरे लफ़्ज़ों की।
सुनकर आवाम मेरे अल्फ़ाज़, मेरी कर रही है हिन्दी।।
समझती क्यों नहीं हकीकत, दुनिया मेरी हक़ीक़ी की।
लतीफा मानकर खूं को, मेरी कर रही है हिन्दी।।
देख लो आज की महफिल—————-।।
नसीहत दी मैंने जिसको,उसको मुझसे हिकारत है।
शरीयत देखी नहीं मेरी, उसको तहविल की चाहत है।।
हकीकत उसने नहीं देखी, रेशमी परदों में छुपी।
नाहक वह मानकर मुझको, मेरी कर रही है हिन्दी।।
देख लो आज की महफ़िल——————।।
वक़्त कब हुआ है वफ़ा, बदलता रहता है करवट।
ढह जाते हैं ऊँचे महल, फिजा बन जाती है मरघट।।
तोड़ देते हैं रिश्तों को, अपने अजीज और साथी।
मानकर मुझको मुफ़लिस, मेरी कर रही है हिन्दी।।
देख लो आज की महफिल—————–।।
रखूं क्यों वास्ता उनसे, जमीं जिनकी नहीं सफ़ा।
कत्ल करते हैं मोहब्बत का,वतन से जो नहीं वफ़ा।।
समझते जो नहीं जज्बात, औरों के दिल – आँसू के।
समझकर मुझको वह पागल, मेरी कर रहे हैं हिन्दी।।
देख लो आज की महफ़िल——————-।।
साहित्यकार एवं शिक्षक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)