घूरती आंखें तो आम बात है।इनका मौसम दिन-रात है।अबलाओं का जीना मुश्किल।कहीं भी आना जाना मुश्किल।कोई बंद कर दे ये घूरती आंखें।मनचलों की कट जाएं पांखें।नजरों से मानों करते बेध।नजरों का समझो हर भेद। -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण।Spread the love Post navigation शब्द की साधना ही मां की आराधना हैबुरा सपना