कहीं भूख से बुरा हाल,
कहीं अन्न ख़राब हो रहा,
देख ए ईश्वर ज़रा तू भी,
चैन कहीं अब खो रहा।
भूखे को ना पूछे अब कोई,
अपने स्वार्थ के बीज बो रहा,
जिए या मरे चाहे अब कोई,
तू भी कहाँ छुप रो रहा।
बिलख रहें हैं कहीं बच्चे,
तो पेट बांधे युवक सो रहा,
बरसा दे फिर रहमत तू ही,
बंद कर दे के जो हो रहा।
पूजा पीहू