बजरंग-संतोष की सुता इकलौती
इनकी मैं पूजा करती जाती हूँ।
राकेश जी संग मैं संसार की
हर खुशी का रंग देख पाती हूँ।
उपाध्याय सर गुरु है मेरे
इनके आशीष से नित कलम चलाती हूँ।
गौरव-अक्षय दो भाइयों के साथ 
नेह का धागा मैं बढ़ाती हूँ।
प्रखर-वैधृत दो पुष्प हैं मेरे 
जिनसे औरत होने का सम्मान पाती हूँ
मंजु मौसी के स्नेह अपार से
मैं हौंसला जीवन में पाती हूँ।
आशी की दोस्ती से तो मैं
हर पल निखरती जाती हूँ।
गरिमा राकेश ‘गर्विता ‘गौत्तम
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