कितने ही ऐसे मुद्दों पर योजनाएं आ रही रोज नई
कितने ही कागज ना जाने योजनाएं खा रही नई
बालिका शिक्षा हो या सुरक्षा हो नित नए नए कानून बने
पर अनाचार होता ना कम
बेखौफ दरिंदे घूम रहे
हर रोज नई खबरें सुन लो नैतिकता के अर्थी बुन लो
फल फूल रहे भ्रष्टाचारी
भूखी मरती ईमानदारी
पैसा पैसे को खींच रहा
अत्याचारों को सींच रहा
दस्तावेज हुए पूरे तो
सच झूठ कोई ना देख रहा संस्कार तो बाकी थे ही नहीं मानवता भी बेजार हुई
नाबालिग हो या बालिग हो
बस इज्जत तार-तार हुई
कोई हितकारी योजना चले
या सख्त को यह कानून बने
हर जगह मारते सेंध लुटेरे
बस जनता को लूट रहे
ना कोई शिकंजा अब कसता
अत्याचारी कहता फिरता
अब चिंता की कोई रही ना बात
तुम डाल डाल हम पात पात