मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे, मेरा रंग दे बसंती चोला- 
हालांकि अभी तक भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु की फांसी विवादित है इस बारे में हर जगह एक ही जानकारियां नहीं मिलती लेकिन किताबों और फिल्मों में यह जानकारी साफ तरह से देखने को मिलती है !कि 23 तारीख को आखिर क्या हुआ था ।
कांग्रेस के 1931 के कराची अधिवेशन में उदासी छाई हुई थी । भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी देने के 6 दिन बाद कराची में कांग्रेस का अधिवेशन था जहां गांधी जी के खिलाफ खूब नारे लगे। देश को अंदाज था कि गांधी इरविन समझौता और भारत सरकार और कांग्रेस सरकार के बीच समझौते के बाद भगत सिंह समेत तीनों क्रांतिकारियों की जिंदगियां   बख्श दी जाएगी । गांधीजी उस समय लोकप्रियता के चरम पर थे। कांग्रेस के उस अधिवेशन में आए हुए युवकों में निराशा फैली हुई थी। ज्यादातर ने काली पट्टी बांध रखी थी वह जानना चाहते थे कि कांग्रेस ने तीनों शहीदों को बचाने के लिए क्या किया ?वह मान रहे थे कि गांधी जी की कोशिश ही काफी नहीं थी। उनका यह भी मानना था कि अगर गांधीजी इरविन के साथ समझौते को भंग करने की धमकी देते तो अंग्रेज निश्चित तौर पर  फांसी को उम्रकैद में बदल देते। कुलदीप नैयर की किताब ‘द मार्टिर भगत सिंह एक्सपेरिमेंट इन रिवॉल्यूशन’ में लिखा है कि गांधीजी के सचिव महादेव देसाई ने बताया कि गांधी जी ने कहा है, मैंने अपनी ओर से हरसंभव जोर डालने की कोशिश की। मैंने वायसराय को एक निजी पत्र भेजा जिसमें मैंने अपने हृदय और  मस्तिष्क को पूरी तरह उडेल दिया ,मगर यह सब बेकार गया। इंसानी दिमाग की पूरी भावना और संवेदना के साथ जो कुछ किया जा सकता था, किया गया । ना केवल मेरे द्वारा बलिक पूज्य पंडित मालवीय जी और डॉक्टर  सप्रू ने भी बहुत प्रयास किया “। अधिवेशन के दौरान कांग्रेसी नेताओं ने अपनी ओर से बहुत सफाईयां देने की कोशिश की लेकिन लोगों के गुस्से पर उसका कोई असर नहीं हुआ। यह भी कहा गया कि इरविन तो तीनों की फांसी रद्दकर आजीवन कारावास में बदलने पर मान भी गए थे, लेकिन वरिष्ठ अंग्रेज 
आईसीएस अधिकारियों ने जब सामूहिक इस्तीफा देने की धमकी दी तो वॉइसराय को अपने वचन से पीछे हटना पड़ा।
हलात यह था कि जब कांग्रेस के अधिवेशन में नए अध्यक्ष पटेल भाषण दे रहे थे तब पंडाल के बाहर भगत सिंह अमर रहे ,इंकलाब जिंदाबाद के नारे लग रहे थे। इस मौके पर गांधी जी का बयान फिर जारी किया गया ,”भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई वे अमर शहीद हो गए। उनकी मृत्यु बहुत से लोगों के लिए निजी क्षति की तरह है । मैं इन युवकों की स्मृति को नमन करता हूं। परंतु मैं देश के नव युवकों को इस बात की चेतावनी देता हूं कि उनके पथ का अनुसरण नहीं करें। हमें अपनी उर्जा आत्मोत्सर्ग की भावना, अपने श्रम और अपने अदम्य साहस का इस्तेमाल उनकी भांति नहीं करना चाहिए । इस देश की स्वतंत्रता रक्तपात के जरीये नहीं प्राप्त हो सकती”। अपने इस बयान के साथ गांधी जी ने ब्रिटिश हुक्मरानों और अफसरों को भी इसके लिए लताड़ा । उन्होंने कहा ,”संधि की शर्तों के अनुसार उनका यह कर्तव्य था कि उनकी फांसी कुछ समय के लिए स्थगित कर देते। अपने इस काम से उन्होंने संधि पर बहुत बड़ा आघात किया है । और यह भी साबित किया है कि वह अभी भी जनता की भावनाओं को कुचलना चाहते हैं”। 
क्रमशः
 गौरी तिवारी 
भागलपुर बिहार
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *