मिश्री जैसी मधुर है बोली, हूं मैं उस नगर मिथिला की ,
भगवती स्वयं जहां अवतरित हुई , जन्मी जहां मां सिता जी…..
अतिथि देवता अपने पूजे यहां रोज जाते हैं,
भूखा कोई लौटे ना दर से इसलिए दो रोटी ज्यादा पकाते हैं।।
सुना कर ढेरों कहानियों जहां दादी बच्चों को सुलाती है
वहीं बच्चों को जगाने यहां की मायें रोज प्रभाती गाती है….
दिखती है यहां प्रेम की पराकाष्ठा, जो हर रोज प्रतिभा जन्माती है,
कला और संस्कृति का अद्भुत मिश्रण है ये, त्योहार जिनके पूरा विश्व मनाती हैं।।
हम प्रेमी पान मखान और आम के हम वासी हैं उस मिथिला घाम के
जहां गुडे गुड़ियों की कहानी आज भी खेले हम बुढ़िया रानी……
जहां बहती है गंगा प्यारी और कोशी जिसकी सखी है नयारी।।
बच्चों की किलकारियों से हरदम गूंजती है ये नगरी
यहां मिलती है दुआ हर मां की देती आशिष है ये धरती….
है जननी जो सुनैना सी पिता है जनक जी प्यारे,
पति पुरषोत्तम राम जैसे देवर है लक्ष्मण जी नयारे।।
मिथिला वो नगरी जहां आए थे शिवजी भी प्यारे
महाकवि विद्यापति के घर उगना रूप धर कर नयारे….
संस्कारों से सुसज्जित मिथिला है ये ,संस्कृति ही जिसकी सम्मान बनी,
आओ कभी तुम भी यहां प्रेम की मधुर वर्षा ही इसकी पहचान बनी।।
जहां सामा चकेबा खेल से बहनें भाइयों की उम्र बढ़ाती है
वहीं मधूश्रावणी व्रत करके पत्नी पति सौभाग्य पाती है…
जहां विद्यापति की नाचारी शिव भक्ति दर्शाती है
वहीं शारदा सिन्हा के गितों से विवाह मंडप सज जाती है।।
विहला मां की पूजा होती तारा मां की शक्ति पीठ यहां
शिव का प्रचण्ड धनुष है टूटा परशुराम का मिला आशिश यहां…..
गोणु जा की कहानी के बिना अधूरा है मिथिला की व्याख्या यहां,
कवियों की जन्मभूमि है ये मैथिल चित्रकला का संग्रह यहां।।
आओ धन्य धन्य बोले हम मिथिला की इस नगरी को,
शत शत नमन में शिष झुकाएं चूमे इसकी धरती को।।