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दिल मे लाखो तूफान ज़ख्मो की
ज़िन्दगी जैसे सज़ा सी लगता था
पल पल बिखर रहा था ख्वाब मेरे
ज़ब तुम्हारा शहर मे ही मेरा ठिकाना हुआ….!
हँसना जैसे भूलने लगा था लब मेरी
आँखों से सपने रूठें रूठें से थे
लगता है अब हर दुआ कबूल हुआ जैसे
जबसे इश्क़ की तुम्हारा शहर मे मेरा बसर हुआ….!
हर धड़कन खामोश सा होगया था मेरा
जैसे मेरी ही साँसे मुझसे जुदा होगया था
ए सनम कैसे करू शुक्राना तेरा इस ज़िन्दगी मे
बहुत सी दिलकश तुम्हारा शहर इस दिल को लगा….!
टूटे टूटे सपने अब धीरे धीरे जुड़ रहे है
रूठा था जो मंज़िल हमसे वो भी मुझे ढूंढ रहे है
क्या कहु तुमसे कितना राहत इस रूह को मिला
ज़ब से तुम्हारे मोहब्बत की शहर मे मेरा पनाह हुआ…!
सुनो…बहुत सितम भरी राहो से गुज़री हूँ हम
अपनों के ही महफिल से पराये किये गए है हम
हो गर कोई कश्मकश तो खुल कर हमसे बयां करना
नहीं तो सिमट पायेंगे गर इस बार मेरा बिखरना हुआ…!
अब तक जो लिखती आई हूँ ग़ज़ल अहसासों की
बेरंग सी ज़िन्दगी का वो बेमतलब अफसानो की
दिया गर साथ ज़िन्दगी मे तो नैना की ये वादा रहा
लिखेगे हर तराने नाम तेरे जो
तुम्हारे दिल के शहर मे थोड़ी सी ही नैना ठिकाना हुआ….!!
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नैना… ✍️✍️
काल्पनिक….
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