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यह ज़िन्दगी भी क्या चीज़ है
अब तक हम ठीक से समझ न पाए
चंद खुशियों के ख्वाहिश मे ही
यह दिल अनकही सी दर्द ही पाए….!!
क्या गुन्हा है ज़िन्दगी जिना यहाँ
जो हर कदम पर हम ठोकर ही खाये
कुछ अपनेपन की ही तो ख्वाब थे पलकों को
लेकिन इस दिल ने अनगिनत जख्म ही पाए…!!
भरोसा न रहा अब दुवाओ मे भी हमें
जो लाख मिन्नते बाद भी अपना न होपाए
बड़े अरमान सजाये बैठे थे हम ज़िन्दगी को लेकर
पर हर पहलु मे हमने इसके चुभन ही पाए….!!
क्या ज़ुल्म कर दिया था होठों ने मुस्कुरा कर
जो पल भर मे ज़िन्दगी हमें रुलाते गए
क्या थोड़ी सी भी हक़ नहीं साँसो को सुकून भरना
जो हर एक सांस मे इतना जलन पाए…!!
क्यूँ आसान नहीं होता राह-ए-मंज़िल ज़िन्दगी की
जो धड़कने अक्सर हमसे तड़प कर पूछा करते है
क्या संजो पाए नैना इन बढ़ती उम्र के साथ
जिसे भी हमराही माना उसे ही खुद से कोसो दूर पाए…!!
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नैना ✍️✍️
काल्पनिक…
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