स्वतंत्र देश की आबोहवा
हुई है देखो आज जवां।
कही आग है कहीं पे पानी
डालती उसको कही रवानी।
आंखे नम है जुबां बंद है
संस्कार ओर मर्यादा कम है।
डोलता फिरता हर नोजवा
बर्बादी का चला कारवाँ।
कलम की ताकत बनी हुई थी
देश की जनता की वाणी।
बिक गए सारे चूने पत्थर
तेल चुन अनाज यहाँ।
रोशन होती गलियों में
बिक गई नन्ही कली जहाँ।
गूंगे बहरों की दुनियां में
चीख ना सुनता कोई यहाँ।
आंखे खुली है जुबां बंद है
कलम पर लगी है बेड़ी यहाँ।
अपनो की ही बात बताना
ओरो की हथकड़ी यहाँ।
सच को लिखना भूल गए
कलमकार अब देखो यहाँ।
दुनियां को दिखलाना जो है
पैसा मिलेगा उन्हें यहाँ।
स्वतंत्र देश की काली स्याही 
हो गई नीलाम यहाँ।
आग लगे उन जुनूनकारो को
लिखते जो परवाने यहाँ।
देश प्रेम की चिता में जलना
बचा है कोई पतंगा यहाँ।
चुन चुन कर है माला बनाई
बंदिशों की हथकड़ी लगाई।
Tv न्यूज सब है सजाई
सच्चाई जो कह नही पाई।
कहे कहानी कलम की देखो
चित्राव ली आज यहाँ 
संध्या पंवार 
निम्बाहेड़ा राजस्थान 
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