माना लड़कों सा जिम्मेदार होना मुश्किल है पर लड़की होना आसान है क्या..??
बचपन से ही अपनी ख्वाहिशों,अपने सपनों का गला घोंटना आसान है क्या..??
कभी जो कर बैठी कोई नादानी समझाने की जगह लोग मुंह फेर ले
और जिंदगी भर उस गलती पर जली़ल करें ये सहना आसान है क्या..??
समाज में सभी के तानों का आहार बन जाना
तो कभी अपने आत्मसम्मान को दूसरो के द्वारा गिरा देखना आसान है क्या..??
कभी बचपन में ही बड़े हो जाने का अनुभव कर जाना
तो कभी घर की जिम्मेदारियों का बोझ ढोते हुए लड़की की तरह भी नहीं जी पाना आसान है क्या ..??
जीवन के हर मोड़ पर खरा उतरना,
हर पल किसी और के लिए खुद को लुटा देना आसान है क्या..??
कभी बेटी ,कभी बहन ,कभी पत्नी ,कभी माँ
इन सारे रिश्तों को एक साथ लेके जीना आसान है क्या..??
बड़ी होते ही सबकी नसीहतों के साथ-कहीं अकेले नहीं जाना,ढंग के कपड़े पहन ,कभी नहीं सुनी ग़र किसी की बात
तो कहा ये लड़की तो हाथ से निकल गयी ब्याह करा दो इसका सुनना आसान है क्या..??
घर की इज्ज़त, बाप की इज्जत बचाने को बिना कुछ सवाल किए बे-मन के रिश्तों में भी जुड़ जाना आसान है क्या ..??
एक घर को छोड़ दूसरे घर को अपनाना
अंजान चेहरो के बीच अपनी पहचान बनाना आसान है क्या ..??
जो बात करते हैं लड़के-लड़कियों की बराबरी का , वक्त पे उनका मुकर जाना ,
भीड़ से भरी इस दुनिया में हमेशा खुद को अकेले पाना और सबको दिखाना की आप बहुत खुश हो आसान है क्या..??
कभी तो आके पूछे हाल इनका भी कोई, जज्बात इनके भी है ये कहना बेकार है क्या,
और ख्वाहिशें इनकी भी दफ़न होती है हर रोज यहां फिर भी बिना उफ्फ किए खामोश हो जाना आसान है क्या..??