एक नन्ही सी कली बन , धरती पर खिली जब
लोग जब कहते कितना भी उड़ ले पराई है पराई तू,
मैं रोती चीखती और कहती झूठी है तेरी बातें और झूठा तू
मेरी नादानी देख आंसू पोंछ आंचल में मां छुपा लेती थी तब।।
उम्र की दहलीज पे कदम बढ़ने लगी
शादी की चिंता सबके मन में खलने लगी
दहेज के लिए पैसे भी नहीं ये बात सुनकर
रिश्ते भी दरवाजे पर दस्तक देना बंद होने लगी।।
बाबा ने संजोए कुछ पैसे मां ने उधारी से सामान घर भर लाई
किसी के गले में हार बनते ही टूट कर बिखर गई
ताने सुनाये गये दहेज में क्या लाई है पैरों से रौन्दी गई
फिर भी सबने कहा दहेज में बस इतना लाई।।
एक गरीब बाप की बेटी थी मैं
दहेज के हाथों बिकी थी मैं
सपने हजारों बिखरे पड़े थे
देख अपनी बेबसी चुपचाप मौन खड़ी थी मैं।।
बचपन से सब कहते थे लड़की का है ये जीवन
सास तुम्हारी मां होगी, ननद तुम्हारी बहन
बाप का फर्ज निभाएगा ससुर
पति संग होगा सुखी जीवन बसर।।
कैसा ये निर्मम समाज है कोई
बनके इंजीनियर, प्रोफेसर, एडवोकेट, कोई जज,
आईपीएस होकर अपनी कीमत लगाता है
तो कोई दो लाख चार लाख पांच लाख
लाख दर लाख पर अपने को भंजाता है
हाय !!ये अनपढ़ दुनिया,ये भी नहीं समझती
किसी गरीब की बेटी को खरीदने की चाह में
अपने बेटों को ही वो है बेचती
शर्म तो बस पैसों में तुल गई गरीब बाप की आह में सब मिट्टी में मिल गई।।