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एक बूंद बूंद के लिए कभी है तरसता,
वह कोई ओर नहीं किसान है अपना
दुनिया का को जो पेट भरता
अपनी खुद कि न ध्यान रख पाता
पाल पोस्कर अपने बच्चों को
जो नेक इंसान बनाता
वह कोई ओर नहीं किसान है अपना।
अन्न का है ये जन्मदाता
कभी न कोई शिकायत करता
परेशानी सामने लाखो आती
पर ये डटकर मुकाबला उनका करता
कभी कोई छुट्टी नहीं
कभी कोई निश्चित समय नहीं
हमेशा यह अपना काम करता
क्योंकि ये है अन्न का जन्मदाता
वह और कोई नहीं किसान है अपना।
कभी बारिश नहीं होती समय पर
तो कभी होती अत्यधिक
बीमारियों का करता सामना
तो कभी ठंड से फसल जल जाती
फिर भी कभी न कोई इसकी शिकायत होती
हमेशा एक नयी आशा रखता
वह कोई और नहीं किसान है अपना।
अपनी फसल से यह प्यार करता
दूसरा कुछ नहीं इसके लिए मायने रखता
जी जान अपनी लगाता
फिर जाकर फल कि कोई आशा करता।
घूमने का न इसका शौक
घर कुंआ घर कुंआ
बस इसी में है इसकी मोज
बस सब कुछ है इसके लिए खेत
जिसका कोई नहीं है मोल
प्रयास अपना हर एक करता
कोई कसर कभी न छोड़ता
यह कोई ओर नहीं किसान है अपना।
तन में न कभी आलस रहता
हमेशा मुस्कराया रहता
दुनिया रात होते सो जाती
पर इसे नींद कहां आती
पूरी रातें ये जागता
कभी भी उठकर खेत को चल पड़ता
यह और कोई नहीं किसान है अपना।
झोपड़ी में अपनी जिंदगी गुजारता।
इसे ही अपनी हवेली समझता
बच्चो की हर इच्छा पूरी करता
चाहे फिर कुछ क्यों न करना पढ़े
दुनिया का हर शोक यह पूरा करता
यह कोई ओर नहीं किसान ही है अपना।
भगवान रूप है हर किसान
कभी न तुम करना अपमान
पूजा तो तुम इसकी करना
क्योंकि यही तुम्हारा पेट है भरता।
,,,,,,,,,,,,,,,,,स्वरचित🌹🌻🌹🌻🌹प्रितम वर्मा🌹🌻🌹🌻🌹