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अब क्यूँ करते हो शिकायत जो सबकुछ बिखर गया
जिसको चाहत थीं प्यार के उसका दिल भर गया
अब क्यूँ पल पल तड़पते हो ए दिल मेरे सीने मे
जिसको जाना था वो अपने शहर को वापस लौट गया
इतना मत रुला ए धड़कन मेरे गुजारिश हैं तुमसे
समझाया कर दिल को, तू तों थोड़ी रहम खा
बर्दास्त नहीं होता चुभन ज़ख्मो की इन साँसों मे
क्या फर्क पढ़ता हैं उसे जो तुम्हे इस तरह छल्ली कर गया
खता तुम्हारी ही हैं जो मुसाफिर से दिल लगा बैठी
वो तों फ़ितरत से ही परिंदा हैं ठिकाना कहीं और का
लगता नहीं कभी ठहरे होंगे कदम किसी अपने के लिए
जिस तरह तोड़ कर हमें ए दिल वो हँसते हुए चला गया
किससे कहें क्या दर्द होती हैं इन तन्हाईयो की
जो करके वीरान हरजाई मेरा हर आशियाना से गया
डर हैं कहीं किसी और का भी यही हर्ष न कर दें बेदर्दी
जिस तरह बेरहमी से दिल का लाख टुकड़ा कर गया
मत करना ऐसा ज़ुल्म किसी और पे ए ज़ालिम बेवफा
मेरी तरह हर कोई न सह पायेगी ये सितम तेरा
मैं तों लफ्ज़ हूँ नैना फिर भी बिखर जाऊगी कोरे पन्नों पे
जब जब पलटो के पन्ने मेरे यादों की,,,
दावा हैं तेरे इन आँखों से तड़प की दरिया बह जायेगा…!!
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नैना……. ✍️✍️
काल्पनिक…
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