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गुज़रते वक़्त के धारा मे ऐसा बहुत कुछ है जो
दुनिया के पन्नों से मिटता गया या
बहुत से कुछ है जो समाज के
लिखी किताबों के पन्नों पर नया लिखा गया
और बदलते ज़माने के साथ
आजकल की दुनिया कदम कदम पर
अपनी नयी पहचान बनाते जारहे है
उदहारण मे कहें तो महिलाएं
कभी वक़्त था जो समाज क्या
अपने खुद का परिवार भी उन्हें वो अधिकार
और वो सम्मान नहीं देते थे कभी
जिनकी वो पूरी हकदार होती है
अब भी कुछ ज्यादा नहीं बदला है समाज
क्योकि आए दिन कुछ ऐसा होता आरहा है
जहाँ औरतों व लड़कियों को
भरे बाजार हो या घर के चार दीवारे
उन्हें प्रताड़ित तो किये जा ही रही है
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है
हर किसी के जुबाँ पर इस बात का चर्चा है आज
महिलाओ की सक्षम होना,
उनके प्रतिभाओ की वर्णन
ममत्व और उनकी सहनशीलता की
उदाहरण दिए जारहे है
महिलाओ की सम्मान आज हर कोई कर रहा है
लेकिन एक सवाल है मन मे हमारे
की सिर्फ आजके दिन ही क्यूँ…?
ये महिलाएं तो बरसों से हर दिन हर पल
हमारे और समाज के बिच रही है
कहाँ की ये बात हुई की साल मे एक दिन
इन्हे सम्मान कर दो, इन्हे सरहाना कर दिया जाए
फिर से वही दिन रात दोहराये जायेगे
कल फिर किसी राह चलती लड़की को
कोई ज़लील कर जायेगा कोई कुछ नहीं बोलेगा
कल फिरसे कोई माँ बाप अपनी बेटी की
सताये जाने की खबर से तड़पेगे
कल फिर किसी भाई की बहन
समाज के बनी नीति और नियमों के चिता पर जलेगी
कल से फिर घर की चार दीवारी मे
किसी मशीन की तरह काम करती औरत नज़र आएगी
पर फिर भी उसे कोई सम्मान या
प्यार का कुछ पल नहीं मिल पायेगा
बदले मे ये जरूर सुनने को मिलेगा की
(दिन भर ख़तम होजाता है इनकी काम पुरे नहीं होते
पता नहीं कितनी आलस्य होगयी घर की औरते )
लेकिन कभी ये नहीं सोचेंगे की
इन्ही दिन भर मे इनकी कितने किरदार निभाने होते है
कयी ज़िम्मेदारी निभाने होते है
गर माता पिता के घर हो तो
बेटी, बहन, दीदी, ननद,कुल की मान, समाज की आन
घर की मर्यादा, खानदान की लाज…
गर ससुराल मे है तो
एक बहू,पत्नी,भाभी, देवरानी, जेठानी,
इनसबसे ऊपर एक माँ का स्वरूप होती है
घर परिवार को संवारने वाली लक्ष्मी होती है
ये सब उस वक़्त महसूस नहीं होता ज़ब
ज़ब एक औरत घर मे सबके बिच हो
लेकिन कुछ पल के लिए वो कहीं चली जाए
तब अहसास होता है की बिना एक महिला के
कोई घर.. घर नहीं रह जाता है
आजकल समाज मे भी जो सम्मान पायी है
इस सम्मान के लिए भी कितनी जिल्लत से गुजरी है
ये हर कोई वाकिफ है दुनिया मे
पर फिर भी डट्ट कर हर मुश्किल का सामना
पुरे साहस के साथ आगे बढ़ती आरही है
औरत को यूही शक्ति का रूप नहीं कहते है
वो सच मे एक शक्ति है जिन्हे उस परमात्मा मे रचे है
स्त्री एक ममता है, एक प्यार की सागर है खुद मे
प्यार से कोई दो बोल कहें तो बरसात करदे ममता के
ऐसी एक पहेली है जिन्हे समझना नामुमकिन है
गर समझना चाहे कोई सच मे तो
ज़िन्दगी मे दिल से सम्मान कर के कोई देख ले इन्हे
प्यार की जहाँ मे मोहब्बत की मूरत है
जब जब हुआ अन्याय कहीं इनपे तो
तब लेले ती ये महा काली की प्रचण्ड रूप ये
इसलिए वक़्त जैसा भी हो ज़िन्दगी मे
कभी महिलाओ को कमजोर या
मजबूर नहीं समझना चाहिए
क्योकि ज़ब यही महिलाएं अपने पे आती है
तो सामने कोई भी हो उन्हें सच्चाई का आईना दिखा देती है
इसीलिए एकेली लड़की हो या महिला
उन्हें फायदा नहीं ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए
नहीं तो ईश्वर न करें क्या पता आज कोई और है
कल खुद के ही घर के बहन या बेटी हो इस हालात मे
क्योकि कहते है न वक़्त किसीका नहीं होता
और कुछ लम्हा साथ होता भी है तो
सारा हिसाब उन्ही पलो मे कर लेता है
इसीलिए ज़िन्दगी के राह मे बहुत सम्भल कर ही कदम बढ़ाये…!!
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नैना…. ✍️✍️✍️