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कब से छुपा रखे थे हम राज़ जो दिल में
हर भेद खोल रहा ये बरसती बारिश की बुँदे
धुन कयी छेड़ गया ये बारिश की रिमझिम
साँसो में नशा घोल रहा हैं यूँ बरस बरस के
हवाओ के साथ उड़ता आया बहकता
मदहोशी में सिमटे ये घने बादल कहीं से
छागया दिल के आसमान पे इस कदर की 
बस में नहीं रहा हमारी धड़कन दिल के
क्यों इतना बेकरार हैं ये हवा क्या जाने
एक अहसास लिए गुज़रा अभी यही से
अजब हाल होजाता हैं इस दिल का भी
जब छूकर गुज़रता हैं दिल को मदहोसी से
जाने क्यों इतना छेड़खानी करने लगे हमसे 
खन खन करती कंगन व ये बलखाती झुमके
कलतक तो नहीं थे हम ऐसे दीवानी उनके
आजकल धड़कन भी थमती हैं मुश्किल से
कल भी हमें बेकरार करता था इश्क़ उनकी
हर रोज़ गुज़रते हैं वो हमारे दिल के गली से
फिर भी कभी कहते नहीं वो हाले दिल अपनी
जिसका इंतजार हैं हमें इश्क़ में बड़े बेसब्री से
ए बांवरा बादल ज़रा थम के पिघला कर
डरने लगा हैं दिल तेरे इस तरह दिल्लगी से 
लाख कोशिश कर तू हमें पिघला ना पायेगा
अच्छी तरह वाकिफ हैं हम तेरे इस दीवानगी से
इस तरह गुस्ताखी ना किया कर ए हवा तू भी
कहाँ तक उड़ा लजाओगे चुनर हमारे सर से
ऐसे भी ना छेड़ा कर की मुश्किल होजाए जिना
देर हैं आने में उनके तू बेकरार ना कर हमें अभी से
ठहर से जाते हैं हम अक्सर उनके ख्यालो में
जैसे फूलो पर आकर ठहर जाते बारिश की बुँदे
बिखर जाते हैं साँसो में तराने कयी प्यार के “नैना”
अब हमारे हर एक अल्फाज़ भी तो हैं सिर्फ उन्हींसे….!!
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नैना… ✍️✍️
काल्पनिक…
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