उलझी सी जो है जिंदगी चलो उसे कुछ आसान बनाते हैं
लफ्जों को देके मायने एहसासों को पंख लगाते हैं
कहां हासिल यहां हर किसी को मुकम्मल जहां होता है
चोट ख़ाके जो संभले उसकी ही तो तारीफें ये सारा जहां करता है

कोई पतंग सी बनके हवा लहराए कोई मांझा बन पतंग काट जाए
जिंदगी के इस अनोखे सफ़र में जाने कितनों की हस्ती मिट जाए

मैं राही बन चलती फिरु तू मेरा मंजिल बन जाए
मैं हाथों की लकीरें भी बदल लूं जो तू मेरी किस्मत बन जाए
तू पंख दे मुझे मैं ये उड़ान भर जाऊ, खुद के लिए एक नई पहचान बन जाऊं

कौन जाने अगले पल क्या हो जाए, हाथों से अपनी ही सांसों की डोर थम जाए
तुम सांझ की तरह बन आना कभी मेरे छत पे
मैं इंतजार में बैठुंगी तुम आके रात की शीतल चांदनी बरसाना मुझपे

थक सी गई हूं दुनिया के लिए खुद को आजमाते आजमाते
अब जीना चाहती हूं मैं भी सुकून से बस तू मुझे प्रकृति सा स्पर्श दिला दें।

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प्रीति वर्मा

By प्रीति वर्मा

🍂The only place where ur dreams become impossible is in ur own thinking . believe urself nd achieve ur goal.....🍂

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