‘कलम की ताकत’ तो इसकी ताकत का अनुमान नहीं लगाया जा सकता क्योंकि वह अपरिमित है। कोई परिमापन संभव ही नहीं है।
भले ही कलम की ताकत दिखती नहीं पर जब यह
चलती है तो रुकती नहीं।
इसका चलना ही तो इसकी ताकत है।
मैं तो कहती हूँ कि कलम को लिखने का औजार बनाइए। कवि, लेखक, साहित्यकार, पत्रकार यहाँ तक कि सबको अपने विचार व्यक्त करने और लिख कर अमर करने का मौलिक अधिकार है। कोर्ट कचहरी में न्याय दिलाने के लिए कलम को ही हथियार बनाया जाता है। माँ शारदे! का वरदान है कलम!बुद्धि ज्ञान से पढ़ने के लिए, कलम से लिखने के लिए, चित्रकारी करने के लिए, अपनी आवाज को साज बनाने के लिए, देश-विदेश में डंका बजाने के लिए, सुषुप्तों को उठाने के लिए, मरती हुई भावनाओं को जीवित करने के लिए चमत्कारिक अनुदान है कलम! शब्दों के मोतियों को पिरोने का मृदुल हथियार है कलम!
सुना है कलम की ताकत तलवार से अधिक होती है और देखने में आया है कि दुनिया में अब तक जितनी लड़ाई तलवार से आरंभ हुईं अकथनीय खून खराबे के बाद उनका क़लम से लिखे समझौते पर ही अंत होता है। यह तो एक ऐसी ताकत है जिसे दुनिया की कोई भी ताकत मात नहीं दे सकती, न रोक सकती है और न दबा सकती है। उदहारण के लिए अगर कोई आशिक नया प्यार करता है तो वो रोमांटिक शायरी लिख कर अपनी ख़ुशी का इज़हार करता है और वही आशिक इश्क में धोखा खाता है यदि लिखने की ताकत है तो दर्द भरे नग्मे लिखने लगता है। बहुत सारे कवि और लेखक हुए हैं जिन्होंने अपनी कलम के सहारे अपने देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने का काम किया है। उदहारण के लिए – यदि रबींद्रनाथ टैगोर ने हमें राष्ट्र गान “जन गण मन ” लिख कर देश की एकता दर्शाया है, तो मोहम्मद इक़बाल ने ” सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ” जैसा गीत दिया है। इंसान कितना भी कमजोर हो जाये पर उसकी कलम में वो दम है जो अंतिम सांस तक ही नहीं उसके बाद भी ज़िंदा रहती है। मुंशी प्रेमचंद्र को ही ले लीजिए उन्हें लिखने से न गरीबी रोक पाई, न बीमारी, उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी अपनी अंतिम किताब ” गोदान ” को पूरा किया था। अतएव प्रत्येक इंसान को अपने अंदर की इस कलम की ताकत को तलाशना और पहचानना चाहिए,उसको साकार स्वरूप देना चाहिए।
मेरे लिए तो कलम कसकते दिल का अटूट संबल है,जो जुबां से प्रस्फुटित नहीं होता कलम उसे बड़ी ही सहजता से व्यक्त कर देती है। किसी ने सही कहा है -:
धन्यवाद!
राम राम जय श्रीराम!

लेखिका- सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक विचार, रुद्रपुर, उत्तराखंड।
