क़िस्मत का खेल देखो,
अजब ही निराला है,
कहीं मिले हीरे मोती,
कहीं मिलता न निवाला है।
कहीं सुख का सागर है,
कहीं सूखा हुआ प्याला है,
कहीं आराम की दुनिया,
कहीं मेहनत से पड़ता छाला है।
पर क़िस्मत भी बदल जाती,
जिसने मन में लक्ष्य पाला है,
मेहनत की लकीरों ने ही,
इस जग को सम्भाला है।
पूजा पीहू