होली आई रे,आई रे,होली आई 
रे।
अमवा की डाली कोयलिया काली,
वन उपवन सजी फूलों भरी डाली,
सरसों गेंहूँ की बाली लहराए,
प्रकृति की निराली सुषमा छाए,
फर फर उड़त पराग, कैसी अद्भुत मधुराई, होली आई रे।
होली आई रे,आई रे,होली आई रे।
बाल गोपाल इत-उत खेलें, 
नर-नारी की टोली निकले,
ढोल मजीरा झांझर बाजे,
जिसका काज उसी को साजे।
संग संग अपने, प्रेम की बौछार लाई रे,होली आई रे!
होली आई रे,आई रे,होली आई रे!
अवधपुरी से दोऊ बालक आए,
गुलाल संग कनक पिचकारी लाए,
बृज से कान्हा रसिया आया,
बरसाने की गोरी संग लाया,
खूब मचाई धूम होली आई रे!
होली आई रे,आई रे,होली आई रे!
गली मुहल्ले सब रंग में रंगे हैं, 
कितने भंग के नशे में चढ़े हैं, 
रंग में नहाए औ इत्र में डूबे हैं, 
धरा से गगन रंगीन धूम्र उठे  है।
पकवानों की सुगंध सबको भरमाई ,होली आई रे
होली आई रे,आई रे,होली आई रे!
चौबारे में बैठ सखियाँ होली गावें, 
इक दूजे को घेर नाच नचावें,
भरि भरि कौलिया गले लगायें,
नवल नारि कुछ कुछ ही लजावें,
देखो कैसी रौनक है आई,होली आई रे,
होली आई रे,आई रे,होली आई रे!
यह होली बरस बीते आई,
नेह की बोली सबको भाई,
काहू से बुरे बोल न बोलो,
प्रेम भाव से संग संग डोलो,
अगले बरस पुनि करें अगुवाई, 
होली आई रे,
होली आई रे,आई रे,होली आई रे!
रचनाकार- सुषमा श्रीवास्तव 
मौलिक रचना,सर्वाधिकार सुरक्षित, उत्तराखंड।
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *