साथियों!
हार को हार मत मानिए और दुःखी होकर मन छोटा न करिए, क्योंकि प्रत्येक हार में भी शिक्षा रूपी जीत का रसाप्लावन है।आइए देखते हैं कैसे -:
हार में जीत है पाई,एक ऐसी सम्पदा आई।
बिन जानी- पहचानी ‘सीख’ की हुई अगुवाई।
कभी हार के भय से ना लौटे कर्म-पथ से,
मंजिल पर जाकर तो,कुछ न कुछ मिला लक्ष्य से।
झोली खाली कभी न आई,
होती रहती हरदम भरपाई।
सोच सोच की बात है प्यारे,
कदम कदम पर वारे – न्यारे।
प्रयास कभी न निष्फल जाए,
कोई तो फल टपका ही जाए।
नई राह संबंध मिलेंगे,
साथी- संगी द्वार खुलेंगे,
भाषा का संस्पर्श बढेगा,
माधुर्य भरे व्यापार बनेंगे।
अनुभव की गठरी बड़ी निराली,
आजीवन घूँट पिलाती है प्याली।
सच कहती है ‘सुषमा’ सबसे
कभी कदम न लौटाना अबसे।
खाली हाँथ न आना होगा,
यही विचार हरदम है रखना।
हार में भी जीत मिलती है,
जीत नहीं तो सीख मिलती है।।
धन्यवाद!
मौलिक कृति,सद्यः निःसृत,
सुषमा श्रीवास्तव, रुद्रपुर, उत्तराखंड।