मैं मरना चाहती हूं
इसलिए नहीं क्यूंकि मैं
जीना नहीं चाहती
बल्कि इसलिए
क्यूंकि
हार गई हूं मैं
खुद से
अपने जीवन से
मैं वही हूं , जो कहती है
संघर्ष ही जीवन है
मैं वही हूं , जो मानती है
जीवन सुख-दुख का संगम है
मैं वही हूं…..
जो हर रोज ढेर सारे सपने
अपनी आंखों में लिए
जागती है
हर सुबह एक नई उम्मीद
लिए जीती है
मैं सोचती थी… कि
एक दिन आएगा
जब सब कुछ ठीक हो जाएगा
वो एक दिन होगा मेरा
जब सब मुझे समझेंगे
लेकिन …. अब हार गई हूं
बहुत से ख्याल आते हैं …. मन में
टूट जाती हूं सोचकर
क्या यही जीवन है?
रचना राठौर