जीवन-पथ तो कर्म-पथ है। कर्म सोद्देश्य होते हैं जिसे हम सफल होने के लिए ही सम्पन्न करते हैं परन्तु सदैव सफलता हासिल नहीं होती है कभी-कभी असफलता भी हाँथ आती ही है लेकिन वह असफलता भी निश्चित ही कुछ न कुछ सिखाती ही है।
सफलता और असफलता में से किसी एक का पलड़ा भारी नहीं है, क्योंकि सीखते हम दोनों से हैं। सच है कि जीत या सफलता एक मन:स्थिति है। लेकिन कुछ हासिल करना या किसी को परास्त करना, वास्तव में जीत कहां है? आप जैसे हैं, वैसे ही खुश हैं, यह सफलता के असल मायने हैं। बस खेलते रहना जीत से कम बड़ी बात नहीं है।सक्रिय रहना ही सबसे बड़ी बात है।हार के भय से निष्क्रिय होकर बैठ जाना सबसे बुरी बात है। जीतने या हारने से ज्यादा अहमियत सक्षम बनने की है। जो कुछ न कुछ अनवरत करते रहने से ही संभव है। जिंदगी जीने की जो सीख खेल-खेल में मिलती है, वह किसी से नहीं मिलती। सुबह की सैर और जिम में कसरत सेहत जरूर दुरुस्त रखते हैं, लेकिन खेलों जैसा चौतरफा व्यक्तित्व निखार नहीं ला पाते। हारना सिखाना ही खेलों की बड़ी खूबी है। जबकि कोई हारना नहीं चाहता, न ही किसी को हारना आता है। स्कूली और गली-मोहल्लों के खेलों में तो बचपन ही गुजरता है कि हारते जाओ, फिर भी खेलते जाओ। कोई कितना हारे, खेलने के मौके कम नहीं होते। खेलों की भांति जिंदगी में भी तमाम चुनौतियों से दो-चार होना पड़ता है- कुछ जीतते हैं, कुछ हारते हैं। कोई सौ में से सौ दांव नहीं जीतता है। अपनी हार को भी सामान्य तौर पर लीजिए। हार के लिए खुद को निराश मत कीजिए । हार को भी एक हिस्सा मानिए, अपने हिस्से की समस्या से सीखें और आगे बढ़ें। फिर, जीतने का इतना महत्त्व नहीं होता, जितना जीतने के लिए प्रयास करने का होता है। प्रयास ही तो एक दिन जीतने की स्धिति में ला खड़ा करता है।विजेता की श्रेणी दिलाता है।
हार जीत और सीख का सुन्दर तारतम्य है बस इसे टूटने नहीं देना ही तो असली जीवन है।
धन्यवाद!
राम राम जय श्रीराम!

सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक विचार, रुद्रपुर, उत्तराखंड।

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