हादसा कभी भी और किसी के साथ हो सकता है ,कभी कभी परिस्थिति हमारे वश में नहीं होती है ,और कभी हमारी लापरवाहियां हमें हादसे का शिकार बना देती हैं।
कुछ सालों तक ट्रेन में जहरखुरान गिरोहों  का आतंक छाया  था। अक्सर  अखबारों में ऐसी खबर पढ़ने  को मिल ही जाती थी।
रेलवे पुलिस लाउडस्पीकर से यात्रियों को ऐसे जहरखुरान गिरोहों से सतर्क करती रहती ,लेकिन भारतीय बहुत जल्दी ऐसे लोगों के झांसे में आ कर अपना सबकुछ गवां देते।
मेरे सामने ऐसी ही एक घटना घटी थी जो आज भी मेरे मस्तिष्क के किसी खांचे में अंकित है।
मैं तब करीब 8,9 साल की रही होंगी,गर्मियों की छुट्टियों में  हमें  नाना नानी और दादा दादी के घर जाने का सुअवसर मिलता।
गोमो स्टेशन जो अब नेताजी सुभाष बोस स्टेशन के नाम से जाना जाता है।वहां से हमें ट्रेन बदलनी होती । फैजाबाद (“अब का अयोध्या कैंट”)जाने के लिए  जम्मूतवी एक्सप्रेस में बैठना होता था।
निर्धारित समय पर ट्रेन आई हम अपनी सीट पर बैठ चुके ,समय से गाड़ी मंथर गति फिर अपनी रफ्तार से खेत खलिहान,एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन होती रात के अंधेरे में चली जा रही थी।सहयात्री आपस में बात कर रहे थे। एक बुजुर्ग व्यक्ति के पास दो लोग उपर की बर्थ  पर बैठे थे, वे उनके परिचित लग रहे थे ,काफी घुल मिल कर बातें कर रहे थे।
रात्रि को खाने के बाद सभी अपनी अपनी बर्थ पर सो गए।हम सभी भी नींद के आगोश में आ गए।
सुबह के 4 बजे होंगे जौनपुर स्टेशन से ट्रेन आगे बढ़ी ही थी की अचानक जोर की आवाज हुई ,वो बुजुर्ग अपनी बर्थ से नीचे आ गिरे।
सभी की नींद खुल गई ,चारों ओर अफरातफरी मच गई लोग आवाज की जगह भागे।मैं भी आंख मींचे ,नींद से जागने की उपक्रम करने लगी।मैने देखा उन बुजुर्ग के मुंह से सफेद झाग निकल रहा था।
सबलोग आपस में बातें करने लगे।कुछ लोग टीटीई को बुलाने चले गए। टीटीई आया , जेब की तलाशी ली गई तो सिर्फ टिकट मिला जो भभुआ स्टेशन का था ,जहां से ट्रेन रात ही में निकल गई थी।
टीटीई ने यात्रियों की मदद से उन्हें बेसिन के पास 
लिटाया ,पानी के छींटें मारे,और अगले स्टेशन पर उन्हें उतारा गया ,उनकी सांसें चल रहीं थी तो शायद ईश्वर की कृपा से वो चिकित्सा के बाद सही सलामत अपने घर चले गए होंगे।
उसके बाद से ट्रेन में उनकी ही चर्चा होने लगी ,
सहयात्री ,जो हावड़ा से आ रहे थे उन्होंने सबको बताया कि ये बुजुर्ग जब  बैठे थे,तो बात हुई थी उन्होंने बताया था कि वे कोलकता कमाने गए थे  ,अपनी बेटी  की शादी करने को।काफी सामान था उनके पास।
एक दो स्टेशन के बाद दो लड़के आकर उनके साथ उपर की बर्थ पर बैठ गए और फिर उन्होंने बताया कि वे उन लोगों के साथ इतने घुल मिल गए की किसी को उनकी नियत पर शक नहीं हुआ और उन्होंने शायद उन्हें  चाय पिलाई थी।
रात में क्या हुआ, वे लड़के कहां उतरे किसी को कुछ पता नहीं।
हमारा भी स्टेशन आ गया , मैं अपने मम्मी पापा के साथ उतर कर दादी के घर चली गई।लेकिन मैं कभी भी उस घटना को नहीं भूल पाई ,आखिर क्या हुआ होगा उन बुजुर्ग के साथ ,कैसे हुई होगी उनकी बेटी की शादी।
कितने सपने,कितने अरमान लेकर एक पत्नी अपने पति का ,एक बेटी अपने पिता का इंतजार कर रहे होंगे। कितना कुछ लूटा उन लड़कों ने विश्वास,अरमान सब कुछ तो,सिर्फ चंद रुपयों के लिए।
समाप्त
संगीता सिंह
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