कविता

एक पहेली बूझना।

हाथ को हाथ न सूझना।

कुछ भी नजर नहीं आता।

रह रह कर मन घबराता।

मन में इक भय हो जाता।

चैन सुकून भी खो जाता।

अशिक्षा भी अंधकार है।

ज्ञान दीप उजियार है।

हर मुश्किल से जूझना।

हाथ से हाथ न सूझना 0…….

चिंता में चित्त जब चकराता।

फिर कुछ समझ नहीं आता।

जब ग़म के बादल छा जाते।

तब हाथ को हाथ न दिख पाते।

पड़े नीम हकीम को पूजना।

हाथ को हाथ न सूझना।

जब काली रात अमावस की।

अंधकार के वस बसकी।

जब स्वार्थ में अंधे हो जाते।

अपने न अपनों को लख पाते।

आपस में लोग सब बतलाते।

बात को कहते बूझना।

हाथ को हाथ न सूझना।

बलराम यादव देवरा छतरपुर

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