कर्तव्य पथ आरूढ;
निज -धर्म निभाता हूं।
हां पिता हूं व्यक्त नहीं कर पाता हूं!!
मेरे ह्रदय के टुकडों सुनो~
मैं अब तुमलोगों में ही जिन्दा हूं।
मैं पतवार हूं ~
हर संकट से तुम्हें खींच लाता हूं!!
मैं पिता हूं व्यक्त नहीं कर पाता हूं।
तुम्हें मिले हर खुशी
जो मैंने ना पाई है;
इसलिए आज भी कर्म अपना नित निभाता हूं।
मैं स्नेह-पाश से बंधा हूं,,
तुम फलो-फूलो,
वट-वृक्ष बनो,
इसलिए हर बाधा को मोङ देता हूं;
मैं पिता हूं व्यक्त नहीं कर पाता हूं।
पर तुम्हें कष्ट हो कोई ,
ये देख नहीं मैं पाता हूं ।
आश्रय मिले तुम्हें छांव का;
इसलिए ही जीवन का कङा धूप
सहता जाता हूं।
हां मैं पिता हूं,,,व्यक्त नहीं कर पाता हूं।
एक पिता के मन की भावना
✍ डाॅ पल्लवी कुमारी”पाम “